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मुंबई उपनगर में बैनरबाज़ों का आतंक: सड़कें बनीं बैनरबाजों की जागीर

मालाड, कांदिवली, गोरेगांव और बोरीवली बने बैनरबाज़ों के अड्डे

सिग्नल पर लटकते बैनर, जनता हुई परेशान

मनपा को करोड़ों का चूना, मनपा अधिकारी गहरी नींद में ??

पी/उत्तर, पी/पूर्व और आर/साउथ विभाग के अधिकारी आखिर क्यों बैनरों के सामने है बेबस ??

मलाड पूर्व के शिवाजीनगर, भीमनगर, गांधीनगर, आनन्दनगर रोड- रोड कम, बैनर ज़्यादा; जनता परेशान 

मुंबई में त्योहारों का मौसम शुरू होते ही एक नई समस्या सिर चढ़कर बोलने लगती है – बैनरबाज़ों का आतंक। बैनरबाज वे लोग होते है जो समाज के लिए कुछ करते तो है नहीं परंतु स्वयंघोषित समाजसेवक और नेता बन जाते है। यही बैनरबाज हर दूसरे दिन अपने बॉस या भाई के जन्मदिन के नाम पर बैनर छपवाकर सड़क पर टांग देते हैं और इतने बड़े-बड़े पोस्टर जिन पर लिखा होता है “भाई का बर्थडे” या “बॉस का बर्थडे” अब मुंबई की सड़कों की नई पहचान बन गए हैं। आलम यह है कि कई जगह तो ट्रैफिक सिग्नल तक इन बैनरों की ओट में छिप जाते हैं। नतीजा – ड्राइवर सिग्नल नहीं देख पाता, लाल बत्ती तोड़ता है और पुलिस चालान काट देती है। गाड़ी चलाने वाला फाइन भरता है, लेकिन असली गुनहगार बैनरबाज़ आराम से अगली फोटो शूटिंग की प्लानिंग करता है।

बीएमसी ने साफ नियम बनाया है – अगर डिजाइनेटेड जगहों के अलावा कहीं भी बैनर लगाने के लिए अनुमति जरूरी है और हर बैनर पर क्यूआर कोड होना चाहिए। इस क्यूआर कोड से पता चलता है कि बैनर कितने दिनों के लिए और कितने साइज का लगाया गया है। घाटकोपर में हुई हॉरडिंग दुर्घटना के बाद यह नियम और सख्ती से लागू हुआ, पर कुछ महीनों में ही नियम किताबों तक सिमट गए और सड़कें फिर से बैनरों से भर गईं। बता दें कि पहले भी बीएमसी कमिश्नर और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि मुंबई को गंदा करने वाले बैनरबाज़ों पर सख्त कार्रवाई की जाए और उनके खिलाफ पूरी शक्ति से निपटा जाए। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उल्टा हाई कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और शहर को बैनरबाज़ों की मनमानी के हवाले छोड़ दिया गया है।

मालाड से बोरीवली तक – रोड कम, बैनर ज्यादा

नवरात्र उत्सव के इस सीज़न में मलाड पूर्व, मलाड पश्चिम, गोरेगांव, कांदिवली और बोरीवली की हालत यह है कि सड़कें बैनरों कीसजावट से शॉपिंग मॉल जैसी लगती हैं। मलाड पूर्व की गलियों का तो कहना ही क्या – रोड कम, बैनर ज्यादा। देखने वाला समझे जैसे किसी ‘बैनर बाज़ार’ में आ गया हो। सवाल उठता है कि पी-पूर्व / पी उत्तर/ आर साउथ विभाग के अधिकारी आखिर करते क्या हैं, जब महीनों तक ये अवैध बैनर उनकी आंखों के सामने हवा में लहराते रहते हैं?

चिंचोली पेट्रोल पंप चौक – बैनरों से ढका सिग्नल

मलाड पश्चिम के चिंचोली पेट्रोल पंप चौक का हाल तो और भी बुरा है। यहां सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के इतने बड़े-बड़े बैनर लटके हैं कि लिंक रोड से आने वाले और एस.वी. रोड से जाने वालों को सिग्नल बिल्कुल नजर नहीं आता। लोग मजबूरी में दूसरे ड्राइवरों की गाड़ियों के सहारे अंदाज़ा लगाते हैं कि हरा हुआ या लाल। यह नजारा बताता है कि बैनरबाज़ी अब सिर्फ आंखों की किरकिरी नहीं बल्कि सीधा ट्रैफिक सेफ्टी का खतरा बन चुकी है।

बीएमसी ने साफ कहा है कि पंडालों को उनके 100 मीटर के दायरे में बैनर लगाने की अनुमति है। यह नियम जायज है और इसका पालन होना भी चाहिए। लेकिन समस्या तब होती है जब बैनरबाज़ सिर्फ अपनी पब्लिसिटी के लिए हर गली, हर चौक, हर सिग्नल पर अवैध बैनर टांग देते हैं। न फीस भरते हैं, न परमिशन लेते हैं, और बीएमसी को करोड़ों का राजस्व नुकसान करवा जाते हैं।

पर हैरत की बात यह है कि नियमित अपराधियों पर बीएमसी कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती। मानो पी-उत्तर और पी-पूर्व विभाग के अफसर नींद में हों। परिणाम यह कि जनता परेशान और बैनरबाज़ मस्त।

इन बैनर बाजों ने अपने ऐसे रुतबा दिखाने के लिए इतने बड़े बड़े बैनर लगाते है की जिसका काफ़ी इसका सड़क को कब्ज़ा कर लेता है, इसका पूरा नजारा मलाड पूर्व में देखने को मिल जाएगा, जिस कारण इससे ट्रैफिक जाम भी बढ़ता है और ऊंची गाड़ियों के गुजरने में दिक्कत आती है। 

यह नजारा बताता है कि बैनरबाज़ी अब सिर्फ दिखावे की राजनीति नहीं रही बल्कि सीधे सड़क सुरक्षा और आम जनता के लिए खतरा बन गई है। मुंबई की सड़कें जनता की हैं लेकिन बैनरबाज़ उन्हें अपनी निजी जागीर समझ बैठे हैं।मनपा के नियम तोड़कर और फीस बचाकर उन्होंने न सिर्फ शहर की खूबसूरती बिगाड़ी है बल्कि बीएमसी की तिजोरी से करोड़ों का राजस्व भी उड़ाया है। 

अब देखना होगा की मनपा इन बैनरबाज़ों पर कड़ी कार्रवाई करती है और मुंबई को उनकी इस अवैध हरकत से आज़ादी दिलाती है या अपनी नींद में मस्त रहती है। 

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