
सऊदी अरब बिगाड़ेगा मोदी के बजट का गणित?
शेयर बाज़ार में एक कहावत है कि यहां हर किसी का वक़्त आता है. कभी बाज़ी तेज़डियों (बुल रन) के हाथ लगती है तो कभी शिकंजा मंदड़ियों (बीयर रन) का कसा रहता है. ये दौर अमूमन पाँच से सात साल का रहता है. यानी शेयरों से कमाई हर कोई कर सकता है, बशर्ते वो 'अपने वक्त' के हिसाब से बाज़ी लगा रहा हो.
यही कहावत कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों पर भी लागू होती है, कमोडिटी (सोना-चांदी) और प्रॉपर्टी बाज़ार को लेकर भी ऐसी ही कहावतें प्रचलन में हैं.
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आये थे तो सीटें तो उनकी झोली में भर-भरकर आई ही थी, आर्थिक हालात भी उनके पक्ष में झुके थे. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का दौर था.
सिर्फ़ छह महीने पहले ही 6 जनवरी 2014 को कच्चा तेल 112 डॉलर प्रति बैरल पर था और इधर मोदी का चुनाव प्रचार भी ज़ोरों पर था. उनकी चुनावी रैलियों में महंगाई से लेकर पेट्रोल के दाम छाये रहते थे.प्रधान