
जनता के लिए दर्द-ए-चालान, ट्रैफिक पुलिसवालों के लिए खुशी का मकाम
जेब जब ढीली होती है तो अच्छे-अच्छों को लाइन पे ले आती है. वर्ना सोचिए, वही सड़कें, वही गाड़ियां, वही लाल बत्ती, वही हेल्मेट वही सेट बेल्ट वही ट्रैफिक के नियम. पर ज़रा सा नोटों का रंग और साइज क्या बदला सब कुछ बदल गया. सड़कों पर खौफ पसर गया. लोग अपनी-अपनी गाड़ियों के आरसी, लाइसेंस, इंश्योरेंस और पॉल्यूशन सर्टिफिकेट ढूंढने लगे. लाल बत्ती को निहार-निहार कर उसके हरी होने का इंतजार मुस्कुरा कर करने लगे. मगर हां, कई जगहों पर दर्द-ए-चालान ऐसा छलका कि उसकी हर झलक झलकियां बन गईं.
पिछले कुछ दिनों से अचानक हिंदुस्तान की सड़कों पर एक अजीब सी उदासी छाई हुई है. सड़कों की रूमानियत कहीं खो सी गई है. ना गाड़ियों के हॉर्न की वो आवाज़ कानों में सुर-ताल छेड़ रही हैं. ना बाइकों की वो खूबसूरत बल खाती लहरिया चाल आंखों को ठंडक दे पा रही हैं. हेलमेट की गिरफ्त में आकर कमबख्त ज़ुल्फें भी हवा में कहां लहरा पा रही हैं