मुंबई
किरायेदार से अपने फ्लैट को खाली कराने के लिए एक 87 वर्षीय बिजनसमैन की 40 साल की कठोर तपस्या आखिरकार सफल हुई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के मालाबार हिल स्थित फ्लैट में कब्जा करने वाले आरोपी किरायेदार को 8 हफ्तों के अंदर उसे खाली करने का आदेश दिया है।बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस गिरीश कुलकर्णी ने बताया, ‘यह एक क्लासिक केस था जहां किरायेदार कोई मामूली आदमी नहीं बल्कि अमीर शख्स था जो कई बिजनस में इंगेज था। उसने फ्लैट मालिक को 40 साल तक उनकी प्रॉपर्टी से दूर रखा। 87 वर्षीय बिजनसमैन राजस्थान के रहने वाले हैं और अपने परिवार के साथ मुंबई अपने फ्लैट में शिफ्ट होना चाहते हैं।’
जज ने बताया कि ट्रायल और अपीलीय दोनों ही कोर्ट में सफलता मिलने के बाद भी फ्लैट मालिक को इतने साल तक अपनी प्रॉपर्टी का लुत्फ उठाने के लिए इंतजार करना पड़ा। दरसअल इसके पीछे वजह है किराया कानून, जिसका फायदा किरायेदार को मिलता गया और वह इतने साल तक उस प्रॉपर्टी में रहता रहा। किराया कानून का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्ग, मुख्य रूप से किरायेदार की रक्षा करना होता है।
1974 में कोर्ट में पहुंचा था मामला
इसके तहत किरायेदार का अनुचित निष्कासन और किराए में ज्यादा वसूली नियम के खिलाफ है। यही वजह थी कि इस मामले को हल होने में इतना वक्त लग गया जो फ्लैट ओनर के लिए नाइंसाफी का सबब बन गया। गैराज सहित 1800 वर्ग मी की प्रॉपर्टी के लिए मकानमालिक और किरायेदार के बीच लीव ऐंड लाइसेंस समझौता 1970 में हुआ था। उस वक्त किराया 1950 रुपये प्रति महीना था। इसके बाद मकान मालिक राजस्थान के डूंगरपुर में अपना पारिवारिक बिजनस देखने चले गए थे। 1974 में फ्लैट मालिक ने एक ऐडवोकेट नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया था कि टेनेंसी अग्रीमेंट खत्म हो गया है और किरायेदार द्वारा फ्लैट खाली न करने के चलते कोर्ट में केस फाइल हो गया है।
कानून की वजह से किरायेदार को मिलती रही राहत
फ्लैट ओनर ने दावा किया कि स्वास्थ्य कारणों से वह और उनकी पत्नी मुंबई वापस आना चाहते हैं और उनके बेटे को वहां जॉब भी मिल गई है। 1986 में ट्रायल कोर्ट के बाद 1988 में अपीलीय अदालत में भी मकान मालिक को जीत हासिल हुई। इसके बाद किरायेदार ने हाई कोर्ट में अर्जी दायर की। जहां परिस्थियों में बदलाव और दूसरी वजहों से मामले में किरायेदार को छूट मिलती रही। इसके बाद हाई कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में किरायेदार को अपने खिलाफ लगे आरोप को गलत साबित न कर पाने के चलते फ्लैट खाली करने का आदेश दे दिया।