मुंबई, मराठा छत्रप शरद पवार द्वारा संसद में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी से मुलाकात कर साझा विपक्षी रणनीति तैयार करने की चर्चा करना, फिर पवार के ही आवास पर विपक्षी दलों की मुलाकात अनायास नहीं है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी पवार इस बहाने महाराष्ट्र एवं केंद्र में सत्ता के समीकरण साधने में जुट गए हैं।
गणतंत्र दिवस के दिन मुंबई में ‘संविधान बचाओ रैली’ का आयोजन किया गया। रैली के अगुवा थे किसान नेता राजू शेट्टी। लेकिन पूरी रैली के दौरान कांग्रेस के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति के बावजूद केंद्रबिंदु बनकर उभरे शरद पवार। इसी प्रकार पिछले माह 13 दिसंबर को नागपुर में चल रहे विधानमंडल सत्र के दौरान कांग्रेस ने सरकार के विरोध में राकांपा के साथ मिलकर मोर्चा निकाला। वहां भी कांग्रेसी नेता हाथ मलते रह गए, और पूरा शो चुरा ले गए शरद पवार। उक्त दोनों रैलियों के बाद कांग्रेस के कई नेता पवार के हावी हो जाने पर अफसोस जताते दिखाई दिए।1999 में शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। उससे पहले की कांग्रेस पर नजर दौड़ाएं तो शरद पवार ही वरिष्ठतम एवं सभी दलों में अच्छा संपर्क रखनेवाले नेता नजर आते हैं। सियासत के सूरमा पवार मानते हैं कि यदि लोकसभा चुनाव के बाद संयुक्त विपक्ष को सत्ता में आने का एक फीसद भी मौका हाथ लगा तो वरिष्ठता, संपर्क और संसाधन के दम पर वह प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार हो सकते हैं। केंद्र की राजनीति में बन रही इस संभावना के मद्देनजर पवार ने अभी से समीकरण साधने शुरू कर दिए हैं। क्योंकि उम्र और अनुभव, दोनों दृष्टियों से साझा विपक्ष राहुल गांधी को तो प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार स्वीकारने से रहा।
महाराष्ट्र की राजनीति में भी शरद पवार सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। भीमा-कोरेगांव की घटना के बाद आई उनकी त्वरित प्रतिक्रिया इसी बात का संकेत देती है। यह बात और है कि एक जनवरी को भीमा कोरेगांव के उपद्रव में मारा गया युवक मराठा निकला और मामला फिर दलित-मराठा टकराव पर जाकर अटक गया।
फिर तीन जनवरी को आहुत राज्यव्यापी बंद के हीरो भी प्रकाश आंबेडकर बनकर उभरे, जिनकी शरद पवार से कभी पटरी नहीं खाई। आंबेडकर 26 जनवरी की ‘संविधान बचाओ रैली’ से भी कन्नी काट गए। लेकिन पवार निराश नहीं हैं। वह अभी भी 1998 वाला दलित-मराठा समीकरण बैठाने में लगे हैं। ताकि 2019 में फिर सूबे की सत्ता हथियायी जा सके।