मुंबई, सरकार एक तरफ परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए हर साल लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ प्रशासन की लापरवाही के कारण सैकड़ों पुरुषों की नसबंदी (वैसेकटॉमी) असफल हो गई है। आंकड़ों की मानें तो पिछले 10 वर्षों में राज्यभर में 250 से अधिक पुरुषों की नसबंदी असफल हुई है। इसके कारण नसबंदी कराने के बाद भी कई परिवार चाह कर भी परिवार नियोजन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं करा सके।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, नसबंदी के दौरान डॉक्टरों द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही के कारण या निश्चित प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं करने की वजह से ऐसा होता है।
तीन जिलों से 61 प्रतिशत मामले
राज्य में असफल नसबंदी के अधिकतर मामले ग्रामीण इलाकों से हैं। हेल्थ मैनेजमेंट इंन्फॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) से मिले आंकड़ों के अनुसार, 2008 से दिसंबर 2017 तक महाराष्ट्र में 260 असफल नसबंदी के मामले सामने आए हैं। इनमें से 158 (तकरीबन 61 प्रतिशत) मामले केवल तीन जिलों से हैं। इनमें अकोला से 76, अमरावती से 50 और भंडारा से नसबंदी के 32 मामले असफल हुए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में नसबंदी करने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में कई बार अयोग्य डॉक्टर भी इसे अंजाम देते हैं। इसके कारण नसबंदी सफल होने की संभावना कम हो जाती है। आंकड़ों पर गहनता से नजर डालें तो पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में नसबंदी सरकारी अस्पतालों में की गई है। अकोला, अमरावती, भंडारा के अलावा 16 मामले गोंदिया से, जबकि 12 गढ़चिरौली से हैं। सफल नसबंदी के मामलों में मुंबई का स्थान काफी अच्छा है और 10 सालों में यहां केवल 4 पुरुष नसबंदी असफल हुई हैं।
अनुभव की कमी
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर सरकारी अस्पताल से जुड़े एक डॉक्टर ने बताया कि असफल सर्जरी के पीछे इसे करने वाले डॉक्टरों में अनुभव की कमी भी एक वजह है। इसके अलावा जांच सर्जरी से पहले और बाद में पैथोलॉजिकल जांच की भूमिका भी काफी अधिक होती है। नसबंदी में सही ट्यूब कटी है या नहीं, इसकी जांच के लिए ट्यूब की हिस्टोपैथोलॉजी जांच जरूरी होती है, हालांकि इसकी सुविधा सरकारी अस्पतालों में बहुत कम जगह होती है।
होती है दिक्कत
स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी के अनुसार, ‘नसबंदी असफल होने के कारण न केवल परिवार नियोजन के लिए चलाए जा रहे अभियान प्रभावित होते हैं, बल्कि इससे पति-पत्नी के व्यक्तिगत जीवन पर भी असर पड़ता है। कोठारी ने कहा कि सरकार को मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले में जांच करनी चाहिए और लापरवाही की असली वजह को सबके सामने लाना चाहिए।’
देशभर में 15 हजार से अधिक मामले
पिछले 10 वर्षों में देश भर में 15 हजार से अधिक पुरुष नसबंदी असफल हो चुकी हैं। नसबंदी असफल होने के सबसे अधिक मामले 7821 ओडिशा में पाए गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 1814, मध्यप्रदेश में 856, बिहार में 665 और राजस्थान में 624 नसबंदी असफल रहीं। हालांकि देशभर के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर साल असफल नसबंदी के मामले कम हो रहे हैं। 2008 में पूरे देश में जहां 8317 असफल नसबंदी के मामले थे, वहीं 2017 में यह 199 रह गए।
क्या है वैसेकटॉमी
पुरुष नसबंदी यानी वैसेकटॉमी परिवार नियोजन का एक जरिया है। बगैर चीरफाड़ के महज एक छोटी सी सर्जरी की मदद से इसे आसानी से किया जा सकता है। डॉक्टरों के अनुसार, इस सर्जरी के तहत लिंग को स्पर्म सप्लाई करने वाली ट्यूब को काट कर निकाल दिया जाता है या उसे ब्लॉक कर दिया जाता है।
30 हजार का मुआवाजा
अगर नसबंदी असफल हो जाती है, तो इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग से की जा सकती है। बीएमसी स्वास्थ्य विभाग की कार्यकारी अधिकारी डॉ. पद्मजा केसकर ने बताया कि पुरुष नसबंदी हो या महिला नसबंदी, असफल होने पर 30 हजार रुपये मुआवजा दिया जाता है। इसके लिए पीड़ित को स्थानीय स्वास्थ्य विभाग में शिकायत करनी होती है।
होती हैं तकनीकी दिक्कतें
असफलताओं के बारे में बताते हुए जनरल सर्जन डॉ. चिंतन पटेल ने बताया कि इसके पीछे तकनीकी दिक्कतें होती हैं। नसबंदी करते समय जहां प्रक्रिया पूरी की जाती है, वहां खून की ट्यूब बुखार की ट्यूब सहित और दूसरी ट्यूब होती हैं। कई बार गलती से सही ट्यूब की बजाय गलत ट्यूब को ऑपरेट कर दिया जाता है।