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तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार इसके इस्तेमाल से डेथ ओवरों के मास्टर बन गए

ई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड…हर विदेशी दौरे से पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर की विक्टोरिया पार्क क्रिकेट अकादमी में वहां के हालातों की मुफीद पिच तैयार की जाती है। यही है टीम इंडिया के तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार की दक्षिण अफ्रीकी दौरे में सफलता का सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र।

एक स्विंग गेंदबाज से डेथ ओवर के सरताज बनने का भुवनेश्वर का सफर इतना भी आसान नहीं है। बात 2015 ऑस्ट्रेलिया दौरे की है। भुवी को यहां अपने करियर में पहली बार चोट का सामना करना पड़ा। विश्व कप सिर पर था और इस बीच मोहित शर्मा, मुहम्मद शमी की जोड़ी ने विश्व कप में कमाल करना शुरू कर दिया। भुवी ठीक हुए लेकिन उन्हें यूएई के खिलाफ सिर्फ एक मैच खेलने का मौका मिला। यहीं से भुवी के करियर का एक नया मोड़ शुरू हुआ। उनके कोच संजय रस्तोगी ने कहा कि इस गेंदबाज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी ताकत और कमजोरी दोनों को पहचानते हैं। भुवी पहचान गए थे कि उन्हें अगर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में टिकना है तो स्विंग के अलावा कुछ और हथियार अपनी गेंदबाजी में इजाद करने होंगे। भुवनेश्वर जब टीम से बाहर हुए तो उन्होंने अपनी शारीरिक फिटनेस पर ध्यान देना शुरू किया। भुवी रोज जिम जाते और अपने घरेलू मैदान पर गेंदबाजी में नए हथियार इजाद करने की कला सीखने के लिए जद्दोजहद करते। कोच संजय ने बताया कि भुवी की सफलता का एक बड़ा कारण उनका जिद्दीपन भी है। हर बार वापसी करने के बाद उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। बस खुद को साबित करने की जिद ही उन्हें इतना बड़ा गेंदबाज बना गई। आइपीएल एक तरह से उनके करियर के लिए बेहद कारगर साबित हुआ। दो बार पर्पल कैप का हकदार बनना दिखाता है कि उन्होंने अपनी गेंदबाजी पर कितनी मेहनत की। आइपीएल एक ऐसा मंच रहा, जहां सीमित ओवर क्रिकेट में उन्हें प्रयोग करने का मौका मिला। यह उनके लिए कारगर भी साबित हुआ, क्योंकि टी-20 प्रारूप गेंदबाजों के लिए क्रिकेट का सबसे मुश्किल प्रारूप है। नक्कल गेंद का प्रयोग : संजय बताते हैं कि भुवी जब भी खाली समय में मेरठ में होते हैं, तो वह अपनी गेंदबाजी पर काफी प्रयोग करते हैं। आमतौर पर गेंदबाज विकेट के पास से आउट स्विंग करते हैं, लेकिन वह बल्लेबाजों को फंसाने के लिए विकेट से दूर जाकर करते हैं। जब बल्लेबाज उनकी धीमी गेंद को परखना सीख गए तो उन्होंने नक्कल गेंद का इजाद किया। यही गेंद आज उन्हें दुनिया के अन्य गेंदबाजों से अलग ले जाकर खड़ा करती है। उन्होंने यॉर्कर गेंद फेंकने के लिए सिंगल विकेट पर खूब गेंदबाजी की, जिससे आज वह डेथ ओवरों में भारत के सबसे सफलतम गेंदबाज हैं।

बल्लेबाजी के लिए खास पिच : विक्टोरिया पार्क में ही एक कोने में एक खास पिच है। यह वह पिच है जिस पर खेलकर भुवी को लगता है कि वह बल्लेबाजी में आत्मविश्वास पा लेते हैं। जब भी वह मेरठ में आते हैं तो इस पिच पर बल्लेबाजी का अभ्यास करना नहीं भूलते हैं। संजय बताते हैं कि आज अकादमी में उनके करियर को देखते हुए तेज गेंदबाजों की भरमार है, लेकिन भुवी इन युवा तेज गेंदबाजों को खुद जैसा बनने की जगह अपनी असल खासियत को पहचानने की प्रेरणा देते हैं। कोच ने कहा कि सीमित ओवर क्रिकेट में गेंदबाज बड़ी मुश्किल से मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द सीरीज बनते हैं लेकिन लेकिन भुवी ने वेस्टइंडीज दौरे पर मैन ऑफ द सीरीज और इंग्लैंड में मैन ऑफ द मैच बनकर खुद को साबित किया। वह अंदर से बेहद सख्त हैं। वह जानते हैं कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बने रहने के लिए खुद में क्या बदलाव करने हैं।

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