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‘मुसलमान औरतें इस देश की नागरिक भी हैं…’

मुंबई
औरतों को पूरी दुनिया में भेदभाव का शिकार होना पड़ा है। यूरोप के कई देश, जो आज विकसित और बहुत सभ्य माने जाते हैं, वहां औरतों को वोटिंग का भी अधिकार बहुत बाद में मिला। भारत में औरतों के संघर्ष कहीं अधिक जटिल रहे हैं… और आज भी हैं। खास तौर पर मुस्लिम औरतों को पर्देदारी की जद में यूं गिरफ्त किया गया कि आजादी के बाद इस तबके की ज्यादातर औरतें घर की दहलीज के भीतर सिमट गईं। संसद में मुसलमानों की आवाज पहुंची भी, तो वह अमूमन पुरुष आवाज थी, जिसने तीन तलाक जैसी तमाम कुरीतियों के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया। पेश है, इन्हीं तमाम मुद्दों के आस-पास भभारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज से फिराज खान की बातचीत भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) क्या है?
बीएमएमए मुसलमान औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था है। जब हमने देखा कि आजादी के 60 साल बाद भी मुसलमान औरतों की बात घर के बाहर उस तरह नहीं होती, जिस तरह एक लोकतांत्रिक देश में होनी चाहिए, तब मैंने और जकिया सोमण ने मिलकर 2007 में इसकी स्थापना की थी। देश में दूसरे मजहबों की औरतों ने बनिस्वत काफी तरक्की की और मुसलमान औरतें घर के भीतर सिमटती जा रही हैं और जुल्म भी सह रही हैं, तब हमें लगा कि एक ऐसी संस्था बनानी चाहिए, जो मुसलमान औरतों के लिए काम करे। घर के भीतर और बाहर उन्हें उनके अधिकार दिलाए और एक प्रोग्रेसिव माहौल तैयार करे। यही सोचकर हमने बीएमएमए की स्थापना की।

• पहले से काफी संस्थाएं काम कर रही हैं, इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
किसी भी समाज की तरक्की के लिए जरूरी है कि उस समाज की औरतें अपने मजहबों को मानते हुए भी प्रगतिशील नजरिया रखें। चूंकि हुकूमतों से लेकर समाज में पुरुषों का वर्चस्व रहा है, तो उन्हें मुसलमान औरतों के लिए इस तरह का माहौल बनाना चाहिए था। बदकिस्मती से यह नहीं बनाया गया। मुसलमानों की जो राजनीतिक और सामाजिक संस्थाएं हैं, उन्होंने तीन तलाक जैसे मुद्दे पर बात की होती, तो यह बुराई कब की खत्म हो गई होती। जिस बिल पर अभी बात हो रही है, यह कब का आ गया होता।

धर्म की ठेकेदारी करने वाले इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि तीन तलाक गैरइस्लामिक है और कुरान में इसकी भर्त्सना की गई है, बावजूद इसके उन्होंने इसमें सुधार के लिए कुछ नहीं किया। इतना ही नहीं, तीन तलाक को अवैध घोषित करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने जो बिल बनाया है, वे उसे खत्म करवाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। चाहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, चाहे जमात-ए-इस्लामी, इन संस्थाओं को मुसलमान औरतों के अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है।

• …लेकिन तीन तलाक को लेकर जो मौजूदा बिल लोकसभा से पास हुआ है, उसके राज्यसभा से पास होने में काफी अड़चनें आ रही हैं। उस बिल की काफी आलोचना भी हो रही है। आपको लगता है कि उसे पास होना चाहिए?
नहीं, इस बिल को मौजूदा स्वरूप में पास नहीं होना। इस बिल में काफी खामियां हैं। हमने इस बिल पर काफी काम किया है और सरकार को सुझाव दिए हैं। हमने सरकार से कहा है कि तलाक कुरान के मुताबिक ही होना चाहिए। दूसरी बात यह कि अगर कोई तीन तलाक देता है, तो इसकी शिकायत सिर्फ पीड़ित महिला ही कर सके। मौजूदा बिल में किसी तीसरे व्यक्ति की तरफ से की गई शिकायत पर भी कार्रवाई हो सकती है, जिसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। हमने तीसरा संशोधन यह करने को कहा है कि इसे जमानती अपराध माना जाए। मौजूदा बिल में यह गैर जमानती है। हिंदू मैरिज ऐक्ट में भी यह जमानती है। हमने यह भी कहा है कि इस बिल में हलाला के मुद्दे को भी जोड़ा जाए। इसके लिए तमाम विपक्षी पार्टियों को चिट्ठियां भी लिखी हैं।

• आप किन लोगों के बीच काम करती हैं? मुख्य मुद्दे क्या होते हैं?
हमारे केंद्र में झुग्गी बस्तियां और बहुत पिछड़े इलाके की मुसलमान महिलाएं होती हैं। हम कुछ टोलियां बनाते हैं। महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करते हैं। उन्हें सिलाई, कढ़ाई, कंप्यूटर आदि का प्रशिक्षण देते हैं, जिससे कि वे बाहर की दुनिया का हिस्सा हों और एक नागरिक के तौर पर भी अपनी पहचान बनाएं। ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में सबसे ज्यादा पीड़ित ऐसी ही औरतें होती हैं, जो बेरोजगार हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए दुनिया थोड़ी आसान होती है।

मुसलमान औरतें सिर्फ मुसलमान औरतें ही नहीं हैं, वे इस देश की नागरिक भी हैं। संवैधानिक मूल्यों के साथ वे भी बेहतर दुनिया का हिस्सा बनें, यह बेहद जरूरी है। हम चाहते हैं कि सच्चर कमिटी की सिफारिशें लागू हों। इसके लिए हम 10 राज्यों में काम कर रहे हैं।

• बीएमएमए पर आरोप हैं कि यह संगठन बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए काम करता है?
हम पर तो यह भी आरोप हैं कि हम आरएसएस के लिए काम करते हैं। लोग बेबुनियाद चीजों को जोड़कर आरोप लगाते हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन को वे भारतीय जनता पार्टी से जोड़ लेते हैं। उन्हें इस ‘भारतीय’ से दिक्कत है। एक दूसरा कारण यह भी है कि पिछले 60 साल में हिंदू मैरिज ऐक्ट में कई संशोधन हुए, लेकिन निकाह और तलाक को लेकर कोई काम नहीं किया गया। अब इस सरकार के दौरान तीन तलाक वाले मुद्दे पर कुछ काम हुआ, जिस पर हम बहुत पहले से काम कर रहे थे, तो लोगों को दिक्कत तो होनी ही थी।

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