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वादे पूरे नहीं हुए तो, फिर होगा क‍िसान आंदोलन: डॉ अज‍ित नवले

मुंबई
पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के किसानों ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। उनके आंदोलन की चर्चा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाई रही। किसान तपती धूप में नंगे पांव 200 किलोमीटर पैदल चलकर नासिक से मुंबई पहुंचे। पैरों में छाले पड़ गए पर कदम पीछे नहीं हटे। इससे किसानों के प्रति लोगों में सहानुभूति बढ़ी। उनके लिए कोई पानी लेकर पहुंचा, तो कोई बिस्कुट लेकर। हर कोई किसानों की मदद करते हुए दिखाई दिया। जनता को किसानों के साथ खड़ा देखकर, सरकार के पैरों तले जमीन खिसक गई। सरकार को किसानों के सामने अपना हठ छोड़ना पड़ा। किसानों के प्रतिनिधियों से सरकार ने बात की। उनकी मांगें मानी। पेश है इस आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले महाराष्ट्र राज्य किसान सभा के महासचिव डॉ. अजित नवले से बातचीत के अंश। किसान आंदोलन से किसानों को क्या फायदा हुआ?
किसान आंदोलन सफल रहा। सरकार ने हमारी सभी मांगें मान लीं। कर्जमाफी का दायरा सन 2009 से घटाकर 2001 किया गया। कर्जमाफी की शर्तों में ढ़ील दी गई, जिसका फायदा लाखों किसानों को मिलेगा। महिला और पुरुष किसान के अंतर को खत्म किया गया, जिसका फायदा दोनों को मिलेगा। आदिवासियों को उनकी जमीन पर खेती करने का अवसर मिलेगा। उन्हें उनकी जमीन का मालिकाना हक मिलेगा। मुख्यमंत्री ने हमारी मांगों को गंभीरता से लिया है और वे इसे लागू करेंगे। उन्होंने किसानों को लिखित आश्वासन दिया है। सरकार ने आपसे से जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा नहीं किया तो अगला कदम क्या होगा?
यह सच है कि किसानों की मांगों को लेकर सरकार के साथ पहले कई बार बैठकें हुई थीं और इस बार भी जो बैठक हुई, उसमें सरकार ने किसानों के प्रति सहानुभूति दिखाई और मांगें मांग ली हैं। फिलहाल हम उनके लागू होने का इंतजार कर रहे हैं। यदि सरकार ने हमारी मांगें लागू नहीं कीं तो हम फिर आंदोलन करेंगे। किसानों के इस आंदोलन को आम लोगों का समर्थन मिला है। आंदोलन के दौरान हमारे किसान बंधुओं ने तपती धूम में नंगे पैर करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय की, लेकिन कहीं भी रास्ता रोको जैसा कुछ नहीं किया। किसी को भी तकलीफ नहीं होने दी। मुंबई में 10वीं और 12वीं की परीक्षा दे रहे छात्रों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो, उसके लिए हम लोगों ने रात में यात्रा की और आंदोलन जब खत्म हुआ तो बड़े ही अनुशासित ढंग से किसान वापस अपने-अपने गांव लौट गए।

•यह आंदोलन महाराष्ट्र राज्य किसान सभा का था, लेकिन दूसरे दल कैसे समर्थन देने आ गए?
यह किसानों का आंदोलन था, जिसे सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया। आम जनता ने खुलकर समर्थन दिया। जहां-जहां से किसान गुजरे, लोगों ने स्वागत किया। इस आंदोलन के बाद पता चला कि किसानों के प्रति लोगों का क्या नजरिया है। सरकार ने भी किसानों का स्वागत किया। उम्मीद है भविष्य में इस तरह के आंदोलन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। किसानों की समस्याओें को सरकार दूर करेगी।
आमतौर पर देखा गया है कि किसानों का आंदोलन उग्र होता है, जबकि यह आंदोलन शांतिपूर्ण रहा?
यह सच है कि मध्य प्रदेश में किसानों का आंदोलन हुआ, तो वहां गोलियां चलीं। दो लोग मारे भी गए, लेकिन हमारा आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्वक तरीके से शुरू हुआ और वैसे ही खत्म भी हुआ। हमारे किसान बहुत ही शांतिप्रिय हैं और दूसरों की समस्याएं समझते हैं। हमारे किसान आशावादी हैं।

• किसान आंदोलन के बारे में कहा गया कि यह मूलत: आदिवासियों का आंदोलन था?
ऐसा मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि यह आदिवासियों का आंदोलन था। यह पूरी तरह से किसानों का आंदोलन था और किसानों पर जब-जब अत्याचार होगा, वे अपने हक की लड़ाई के लिए आंदोलन करेंगे। इस आंदोलन में जो आदिवासी शामिल हुए, वह भी किसान ही हैं। वन जमीन पर खेती करने वाले आदिवासी किसानों को सरकार उनके अधिकार से वंचित कर रही है। इसलिए वे अपने हक के लिए आंदोलन में शामिल हुए।

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