Tuesday, November 26metrodinanktvnews@gmail.com, metrodinank@gmail.com

कांग्रेस ने उठाई मांग, प्रशासनिक और न्यायिक काम छोड़ें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा।

नई दिल्ली
सोमवार को पूरे देश की नजर सुप्रीम कोर्ट पर रहेंगी। सप्ताह के पहले दिन जब कोर्ट में कामकाज शुरू होगा तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा तीन जनहित याचिकाओं की सुनवाई के लिए कोर्ट नंबर एक में बैठेंगे। कांग्रेस के नेतृत्व में सात विपक्षी दलों का CJI मिश्रा के खिलाफ उपराष्ट्रपति के पास महाभियोग प्रस्ताव लंबित है। कांग्रेस ने चीफ जस्टिस पर दबाव की रणनीति के तहत कहा है कि उन्हें अब न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज से खुद को अलग कर लेना चाहिए। पार्टी का यह भी सोचना है कि अगर उपराष्ट्रपति प्रस्ताव को खारिज करते हैं तो वह सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं। हालांकि महाभियोग प्रस्ताव में कई उलझनें भी हैं। उधर, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू अपनी चार दिन की छुट्टी रद्द करते हुए दिल्ली पहुंच गए हैं। नायडू आज ही पीएम नरेंद्र मोदी से भी मिल सकते हैं। आज चीफ जस्टिस के सामने तीन मामले लिस्टेड हैं।
ये तीन अहम याचिकाएं होंगी चीफ जस्टिस के सामने
-एक याचिका होटेलियर केशव सूरी ने यह मांग करते हुए दाखिल की है कि आईपीसी की धारा 377 को रद्द किया जाए। यह धारा होमोसेक्सुअल बिहेवियर को क्रिमिनल एक्टिविटी की कैटेगरी में रखती है।

-जस्टिस मिश्रा के सामने सोमवार को एक याचिका सलमान खान की भी होगी। सलमान को हाल में काले हिरण के शिकार के मामले दोषी ठहराया गया था। सलमान ने उस फैसले को चुनौती दी है।

-तीसरी अहम याचिका फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट मीडिया की है। यह याचिका बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह के खिलाफ है। उपराष्ट्रपति के पाले में गेंद
यह सवाल बाद में उठेगा कि चीफ जस्टिस को मामलों की सुनवाई से खुद को स्वेच्छा से अलग करना चाहिए या नहीं। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को पहले यह निर्णय करना है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या नहीं।

प्रस्ताव पर विचार में लग सकते हैं कई दिन
एक्सपर्ट्स ने कहा कि इस प्रोसेस में कई दिन लग सकते हैं। संविधान में यूं भी इस बारे में निर्णय करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। कानूनी जानकारों से सलाह करने और पेश की गई सामग्री पर नजर डालने के बाद अगर सभापति प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो वह चीफ जस्टिस के खिलाफ लगाए गए आरोपों को तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के पास भेजेंगे, जो उन पर गहराई से विचार करेगी।
मामला नहीं तो महाभियोग प्रस्ताव खारिज
अगर कमेटी ने तय किया कि चीफ जस्टिस के खिलाफ कोई मामला बन ही नहीं रहा है तो प्रक्रिया तत्काल खत्म कर दी जाएगी। हालांकि अगर कमेटी ने कुछ आरोपों में भी दम पाया तो संसद के दोनों सदन चीफ जस्टिस को पद से हटाने के प्रस्ताव पर बहस करेंगे। इस मोड़ पर आकर यह सवाल उठेगा कि जस्टिस मिश्रा को चीफ जस्टिस का पद छोड़ देना चाहिए या नहीं और वह अपने आधिकारिक दायित्व निभाना जारी रख सकते हैं या नहीं।
महाभियोग प्रस्ताव के बाद न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों से अलग करने की परंपरा
परंपरा यही रही है कि महाभियोग प्रस्ताव का सामना करने वाले जज सभी न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों से खुद को तब तक अलग कर लेते हैं, जब तक कि उनके खिलाफ सभी आरोप खारिज न हो जाएं। दूसरे जजों के मामले में चीफ जस्टिस उन्हें प्रशासनिक कार्यों से खुद अलग किया करते हैं। इस बार प्रस्ताव चीफ जस्टिस के ही खिलाफ है। जस्टिस मिश्रा अक्टूबर 2018 में रिटायर होंगे।

महाभियोग में हैं कई उलझनें

-यह पहली बार है जब देश के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाया गया है।

-अभी मौजूद नियम में चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग को लेकर कोई प्रक्रिया स्पष्ट नहीं।

-हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने के बारे में संविधान में उल्लेख है और उसकी प्रक्रिया भी है।

-किसी जज के खिलाफ जांच में आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट की कॉलिजियम आरोपित जज से काम वापस लेने के लिए संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कहती है और वह जज से न्यायिक कार्य वापस ले लेते हैं। पर चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक हेड होता और उससे काम वापस नहीं लिया जा सकता है।

-हाई कोर्ट के मामले में कॉलिजियम ज्यादा से ज्यादा जज का ट्रांसफर कर सकती है, लेकिन चीफ जस्टिस मामले में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है।

-चीफ जस्टिस से काम वापस लेने का नियम नहीं। यह उनके विवेक पर निर्भर।

कांग्रेस का चीफ जस्टिस पर निशाना
कांग्रेस ने कहा है कि चीफ जस्टिस को अब सभी मामले खुद को अलग कर लेना चाहिए। देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल का कहना है कि इसका जस्टिस बी एच लोया की मृत्यु या किसी अन्य मामले से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा कि न्यायपालिका पर संकट के कारण विपक्ष के पास इसकी सुरक्षा की कोशिश करने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था।

सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ राज्यसभा के 50 सदस्यों या लोकसभा के 100 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला महाभियोग प्रस्ताव लाने का अधिकार संविधान के आर्टिकल 124 (5) के तहत दिया गया है और इस वजह से यह कानूनसम्मत है। इसका राज्यसभा के अध्यक्ष को सदन में एक विषय पर चर्चा के लिए दिए गए नोटिस से कोई संबंध नहीं है। ये सदन की कार्यवाही नहीं है, यह एक संवैधानिक प्रावधान के तहत शुरू की गई कार्यवाही है और संसद के एक कानून के तहत नियंत्रित है। यह पूरा विवाद गलत है।

प्रस्ताव स्वीकार नहीं होने की स्थिति में सवाल पर सिब्बल ने कहा, ‘मेरी समझ से राज्यसभा के अध्यक्ष की भूमिका यह तय करने तक सीमित है कि प्रस्ताव ठीक तरीके से लाया गया है या नहीं और इसके लिए न्यूनतम संख्या में सांसदों के हस्ताक्षर हैं। प्रस्ताव के सही पाए जाने पर अध्यक्ष को इसे स्वीकार करना होगा।’ उन्होंने कहा कि राज्यसभा के सभापति को इसका फैसला करने दें। इसके बाद हम अपने कदम पर विचार करेंगे। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह ऐसा करेंगे।

Spread the love