मुंबई
करीब 100 प्रमुख संगठनों और कई प्रमुख एक्सपर्ट्स ने देश के बैंकिंग संकट और इकॉनमी में कथित गिरावट को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। एक्सपर्ट्स ने कहा है कि नोटबंदी और उसके बाद पैदा हुए नकदी संकट ने बैंकों और इकॉनमी को डुबो दिया है। शुक्रवार को नैशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट (NAPM) ने पत्र जारी कर बिंदुवार तरीके से समस्याओं को सामने रखा है। इस ओपन लेटर में एक्सपर्ट्स ने इस बात का जिक्र किया है कि पिछले कुछ हफ्तों से कई राज्यों के एटीएम सूख गए हैं। इसकी वजह से 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी के बाद के हालात फिर पैदा हुए हैं। देश नकदी संकट से फिर एक बार जूझ रहा है। हालांकि एक्सपर्ट्स ने नोटबंदी के बाद बमुश्किल 18 महीनों में ही दोबारा पैदा हुए नकदी संकट के पीछे कई वजहें गिनाई हैं। उन्होंने फाइनैंसल रिजॉलूशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI) बिल से उपजे भय, नए नोटों के हिसाब से एटीएम को रीकैलिब्रेट नहीं करने, आगामी चुनावों के लिए नोटों की होर्डिंग और विड्रॉल पर लगाए गए शुल्क की वजह से काफी मात्रा में कैश निकासी को वजह बताया है।
हालांकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि सिस्टम में पर्याप्त कैश (125, 000 करोड़ रुपये) मौजूद है। इसके बावजूद आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि सर्कुलेशन में पर्याप्त करंसी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमीर तबका कैश की होर्डिंग कर रहा है। उनके मुताबिक इस संकट से सबसे ज्यादा अनौपचारिक क्षेत्र, गरीब परिवार प्रभावित हुए हैं। यानी ऐसे लोग जो पूरी तरह से डेली कैश और कैश-क्रेडिट के भरोसे हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसा तब है जबकि यह सेक्टर अभी नोटबंदी के असर से पूरी तरह उबर भी नहीं पाया है। कैश फ्लो में लगातार पैदा हो रही अड़चनों ने लाखों लोगों की आर्थिक सुरक्षा को ध्वस्त कर दिया है। इसकी वजह से औद्योगिक विकास की रफ्तार भी सुस्त हुई है। उच्च स्तर पर पहुंच चुकी बेरोजगारी ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया है। एक्सपर्ट्स ने खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स की कंपनियों के दिवालिया होने की रफ्तार में तेजी को भी चिन्हित किया है।
उनके मुताबिक कंपनियां लागत कम करने के लिए ऑटोमेशन कर रहीं हैं। इसकी वजह से नौकरियां तेजी से खत्म हो रहीं हैं और वर्किंग क्लास की समस्याओं में इजाफा हो रहा है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह सब तब हो रहा है जब पूरा बैंकिंग सेक्टर कॉर्पोरेट्स बैड लोन और एनपीए से चरमराया हुआ है। FRDI बिल से पब्लिक सेक्टर के बैंकों से जुड़े भरोसे को भी झटका लगा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिल के ‘बेल-इन’ क्लॉज में बुरे लोन की स्थिति में जमा रकम की मदद से डूबती संस्था को बचाने की व्यवस्था है।
ऐसे में लोगों के अंदर यह डर बैठ रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भी उनकी सेविंग्स सुरक्षित नहीं है। एक्सपर्ट्स की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि जिस हिसाब से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का दुरुपयोग हो रहा है और सरकार कैशलेस देशों की लीग में शामिल होने की दौड़ में बेतहाशा भाग रही है, उससे संकट में और इजाफा ही हो रहा है। इस बयान में एक्सपर्ट्स ने कहा है कि कई पश्चिमी देशों में कैशलेस रिटेल ट्रांजैक्शन की वजह से एटीएम बंद किए जा रहे हैं।
वहीं, भारत के संदर्भ में कैश ट्रांजैक्शन की बहुलता होने के बावजूद बैंक अपने एटीएम बंद कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2018 से बैंकों ने रोजाना के हिसाब से 5 एटीएम बंद किए हैं। मार्च 2017 और फरवरी 2018 के बीच देशभर में 1695 एटीएम बंद किए गए हैं। बिहार, आंध्र प्रदेश समेत वे 6 राज्य जो कैश संकट से जूझ रहे हैं, वहां भी एटीएम की संख्या में तेजी से कटौती हुई है।
एक्सपर्ट्स ने सरकार से FRDI बिल को वापस लेने, बेसिक ट्रांजैक्शन पर उपभोक्ताओं पर बैंकों की तरफ से लगने वाले चार्ज खत्म करने और कॉर्पोरेट द्वारा लिए गए लोन को चुकता करने के लिए नीति बनाने का आग्रह किया है। ओपन लेटर के तौर पर जारी हुए इस बयान पर देशभर के उच्च संगठनों, एक्सपर्ट्स और ऐक्टिविस्ट ने हस्ताक्षर किया है।