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पत्रकार जे. डे हत्‍याकांड में आ गई फैसले की घड़ी

मुंबई
पिछला एक महीना बॉलिवुड स्‍टार सलमान खान और स्‍वयंभू बाबा आसाराम पर राजस्थान की दो अदालतों द्वारा दिए गए फैसले की वजह से चर्चा में रहा। अब देश की नजरें मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार जे. डे की 7 साल पहले हुई हत्या से जुड़े मुकदमे पर है। 2 मई को सीबीआई अदालत इस केस में अपना फैसला सुनाएगी। जे.डे की 11 जून, 2011 में पवई में दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन के दो साल पहले भारत भेजे जाने के बाद यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया था। हालांकि इस केस की प्रारंभिक जांच लोकल पुलिस, मुंबई सीपी के स्क्वॉड से जुड़े वसंत ढोबले, राकेश शर्मा के अलावा मुंबई क्राइम ब्रांच की एक विशेष टीम ने की थी लेकिन केस डिटेक्ट क्राइम ब्रांच ने किया था।

सीबीआई को ट्रांसफर होने से पहले इस केस में दो चार्जशीट भी उसी की ओर से ही कोर्ट में दायर की गई थीं। क्राइम ब्रांच की इस विशेष टीम के एक सदस्य तब के यूनिट-वन के सीनियर इंस्पेक्टर रमेश महाले भी थे। फैसले से पहले उन्होंने इस केस की पूरी पृष्ठभूमि के बारे में बताया। अब यह इस बुधवार को पता चलेगा कि कोर्ट अलग-अलग जांच एजेंसियों द्वारा की गई जांच को कितना सही या कितना गलत मानती है।

क्राइम ब्रांच का गवाह, सीबीआई का आरोपी
महाले के अनुसार, ‘हमने इस केस में सतीश कालिया, अनिल वाघमारे, अभिजीत शिंदे, नीलेश शेडगे, अरुण डाके, मंगेश आगवने, सचिन गायकवाड, विनोद अंसारी, दिलीप सिसौदिया, पॉल्सन जोसेफ को पहले गिरफ्तार किया। कुछ महीने बाद पत्रकार जिग्ना वोरा को भी पकड़ा। भारत डिपोर्ट होने के बाद जब सीबीआई ने छोटा राजन को जे डे केस में अपनी कस्टडी में लिया तब रवि रितेश्वर को भी आरोपी बना दिया गया। क्राइम ब्रांच के पास जब यह केस था, तब वह क्राइम ब्रांच का गवाह था। रवि रितेश्वर को कुछ महीने पहले विदेश में गिरफ्तार कर लिया गया है पर जे डे मर्डर केस में मुकदमा खत्म होने तक उसका भारत प्रत्‍यर्पण संभव नहीं हो पाया था। इस केस में नयन सिंह बिष्ट नामक भी एक आरोपी है। वह अभी भी फरार है।’ हर आरोपी के अलग-अलग रोल
महाले ने इस केस में हर आरोपी का रोल भी बताया। उनके अनुसार, ‘क्राइम ब्रांच की जांच में जो बातें सामने आई थीं, उनके मुताबिक इस केस के प्रमुख आरोपी सतीश कालिया ने छोटा राजन के कहने पर इस हत्या की साजिश रची। उसने छोटा राजन से बात की। जे. डे पर उसी ने गोलियां चलाईं। उसी ने इस हत्या की साजिश में अन्य आरोपी इकट्ठा किए। कालिया ही अनिल वाघमोरे, नीलेश शेडगे, अभिजीत शिंदे को लेकर नैनीताल गया। पॉल्सन जोसेफ नामक आरोपी से उसने ग्लोबल रोमिंग सिम कार्ड लिया। इसी सिम कार्ड से छोटा राजन से बात की। वारदात से पहले करीब तीन दिन तक जे.डे पर नजर रखी। हालांकि जे.डे दिखे नहीं। 11 जून, 2011 को जब जे. डे दिखे, तो अपने साथी के साथ बाइक पर बैठकर कालिया ने उनका पीछा किया और फिर दोपहर बाद पवई में उन पर गोलियां चला दीं। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई।

अनिल वाघमारे का किस्सा
अनिल वाघमारे नामक दूसरे आरोपी के बारे में महाले कहते हैं कि वाघमारे ने भी तीन दिन जे.डे पर निगरानी रखी थी। वह नैनीताल भी गया था और कुछ अन्य आरोपियों के साथ मुलुंड के उमा पैलेस बार भी गया था। वहां जे. डे एक अन्य पत्रकार के साथ गए थे। विनोद अंसारी ने जब जे. डे को हाथ मिलाया, गले लगाया, तो अनिल वाघमारे ने जे. डे को पहचान लिया था। इस केस में अभिजीत शिंदे और नीलेश शेडगे भी आरोपी हैं। ये दोनों भी, जैसा कि आरोप है, सतीश कालिया के साथ नैनीताल गए थे। वहां रिवॉल्वर और गोलियां ली थीं। दोनों ने जे.डे के घर के बाहर वारदात से तीन दिन पहले तक निगरानी रखी। 11 जून, 2011 को दोनों ने जे. डे का पीछा किया। आरोप है कि दोनों को 25-25 हजार रुपये मिले थे। अरुण डाके का डीसीपी के सामने बयान
रमेश महाले का कहना है कि अरुण डाके नामक आरोपी भी 7 जून, 2011 को उमा पैलेस बार में जे.डे को पहचानने के लिए गया था। उसने भी तीन दिन तक जे.डे पर नजर रखी थी। उसने डीसीपी के सामने स्‍वीकार भी किया था। मकोका में डीसीपी के सामने दिया गया बयान मैजिस्ट्रेट को दिए बयान जैसा ही होता है। कोर्ट में ऐसे बयानों की बहुत अहमियत होती है। वारदात वाले दिन जिस बाइक पर शूटर सतीश कालिया बैठा था, वह बाइक अरुण डाके चला रहा था। इस केस में गिरफ्तार लोगों में एक मंगेश आगवाने भी है। उसने वारदात वाले दिन से पहले दो दिन 9 और 10 जून को जे.डे पर निगरानी रखी। 11 जून को उसने भी जे. डे को फॉलो किया। वह उस दिन खुद बाइक चला रहा था। अनिल वाघमारे पीछे बैठा था। महाले का कहना है कि आगवाने को दस हजार रुपये मिले थे।

अब जिंदा नहीं विनोद चेंबूर
मुंबई क्राइम ब्रांच की जांच में यह बात भी सामने आई थी कि सचिन गायकवाड नामक आरोपी 10 जून को जे. डे पर नजर रखने के लिए गया था। महाले के अनुसार, ’11 जून को वारदात वाले दिन वह जे. डे का पीछा कर रहा था। इस केस का एक आरोपी विनोद असरानी उर्फ विनोद चेंबूर भी उसके साथ था। उसकी अब मृत्यु हो गई है। क्राइम ब्रांच का उस पर आरोप था कि उसे छोटा राजन ने बताया ‘मेरे लड़कों (पंटरों ) को पहचान कर बताना कि यह जे.डे है।’ उसने पॉल्सन के जरिए सिम कार्ड लिया। उस पर आरोप लगा कि उसने छोटा राजन के कहने पर बहाने से एक पत्रकार के जरिए जे.डे को उमा पैलेस बार बुलाया।

नैनीताल कनेक्शन
जे. डे केस में दूसरा बयान दीपक सिसौदिया नामक आरोपी ने दिया था। महाले बताते हैं कि दीपक नैनीताल का रहने वाला है। आरोप है कि छोटा राजन के कहने पर उसने सतीश कालिया को गोलियां और रिवॉल्वर दी थीं, जिन्हें लेने कालिया अपने कुछ साथियों के साथ वहां गया था। जे. डे केस में पॉल्सन जोसेफ नामक आरोपी ने भी बयान दिया था। पॉल्सन पर आरोप लगा कि उसने सतीश कालिया को ग्लोबल रोमिंग कार्ड्स दिए। दो लाख रुपये दिए। उस पर यह भी आरोप है कि उसने अपने ग्लोबल रोमिंग कार्ड से पत्रकार जिग्ना वोरा और छोटा राजन की दो बार बात भी करवाई। जिग्ना पर क्राइम ब्रांच और सीबीआई ने इस केस में कुछ और भी गंभीर आरोप लगाए है। इन आरोपों में कितनी सचाई है? या जमानत पर चल रही जिग्ना क्या इस केस से स्थाई तौर पर बरी हो जाएगी? यह भी 2 मई को अदालत के फैसले से ही पता चलेगा।

सतीश कालिया पर आरोप
महाले ने 11 जून, 2011 का यानी वारदात वाले दिन का जो सार समझाया, उसके मुताबिक, उस दिन जिस बाइक पर सतीश कालिया बैठा था, उसे अरुण डाके चला रहा था। एक दूसरी बाइक को मंगेश आगवाने चला रहा था, उस पर अनिल वाघमारे बैठा था। तीसरी बाइक को अभिजीत शिंदे चला रहा था, उस पर पीछे नीलेश शेडगे बैठा था। सचिन गायकवाड नामक अन्य आरोपी जीप पर बैठकर जे. डे का पीछा कर रहा था।

ऐसे सुलझा केस
जब 11 जून, 2011 को जे. डे का मर्डर हुआ था, तब मुंबई पुलिस आयुक्त की कुर्सी पर अरूप पटनायक और क्राइम ब्रांच चीफ की कुर्सी पर हिमांशु राय बैठे थे। पटनायक ने पिछले पखवाड़े बीजू जनता दल जॉइन किया है। उन दिनों देवेन भारती क्राइम ब्रांच में अतिरिक्‍त सीपी थे। मुंबई पुलिस पर इस केस को डिटेक्ट करने का बहुत दबाव था। केस सीबीआई को सौंपने की मांग की जा रही थी, इसलिए लोकल पुलिस, मुंबई सीपी के खुद के स्क्वॉड के अलावा मुंबई क्राइम ब्रांच की भी एक विशेष टीम केस के डिटेक्शन के लिए बनाई गई।

इस टीम में अरुण चव्हाण, श्रीपद काले, नंद कुमार गोपाले, अजय सावंत, विलास दातीर और संजय निकम जैसे अधिकारी थे। जांच टीम ने कई पत्रकारों से जे.डे की पूरी पृष्ठभूमि, दिनचर्या और उनकी आदतों के बारे में पूछा। पता चला कि जे.डे अपनी जेब में एक-एक रुपये के सिक्के बहुत रखते थे। एक पत्रकार ने जांच टीम को बताया कि जब भी उनके पास किसी खबरी के कॉल्स आते थे, वह अपनी बाइक को रोकते थे और फिर पास के किसी पीसीओ से खबरियों को कॉल्स करते थे। क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच को यहीं से आगे बढ़ाने का फैसला किया।

घाटकोपर से पवई
जे. डे की मां का घाटकोपर में घर था और जे. डे का अपना घर पवई में था। वह लगभग रोज ही मां के पास मिलने जाते थे। 11 जून, 2011 को, जिस दिन जे. डे की हत्या हुई, उस दिन भी वह अपनी मां के घर से पवई में अपने घर अपनी बाइक से लौट रहे थे। क्राइम ब्रांच की जांच टीम ने उनके एक पत्रकार मित्र की जानकारी के आधार पर घाटकोपर से पवई के बीच करीब दो दर्जन पीसीओ नंबरों की डिटेल निकाली। सभी पीसीओ के वारदात से करीब एक पखवाड़े पहले के सीडीआर मंगाए गए। उसी में जे.डे की मां के घाटकोपर वाले घर के पास वाले एक पीसीओ के सीडीआर में एक नंबर शक के घेरे में आया था। उस नंबर की जब पड़ताल की गई, तो फिर कई नंबरों की कड़ियां एक दूसरे से जुड़ती गईं।

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