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पाकिस्तान ने ‘सरकार के इशारे पर नहीं चलने’ के लिए मुंबई हमले के चीफ प्रॉसिक्यूटर को हटाया

लाहौर
पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने मुंबई आतंकवादी हमले के चीफ प्रॉसिक्यूटर को ‘सरकार के बताए दिशानिर्देश पर नहीं चलने’ के लिए उन्हें इस मुकदमे से हटा दिया है। यह जानकारी रविवार को एक अधिकारी ने दी। मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं पर कानूनी शिकंजा कसने के भारत के प्रयास को इससे झटका लगा है। लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी नवंबर 2008 में कराची से मुंबई नाव से पहुंचे थे और मुंबई में कई जगहों पर हमले किए थे, जिसमें 166 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक जख्मी हो गए थे। चीफ प्रॉसिक्यूटर को हटाए जाने की जानकारी रखने वाले फेडरल इन्वेस्टिगेश एजेंसी (FIA) के एक अधिकारी ने कहा, ‘गृह मंत्रालय ने FIA के विशेष अभियोजक चौधरी अजहर को इस हाई प्रोफाइल केस से हटा दिया है। वह 2009 से ही मुंबई आतंकवादी हमले में मुख्य अभियोजक के तौर पर प्रतिनिधित्व कर रहे थे।’ उन्होंने कहा कि अजहर से कहा गया है दिया है। वह 2009 से ही मुंबई आतंकवादी हमले में मुख्य अभियोजक के तौर पर प्रतिनिधित्व कर रहे थे।’ उन्होंने कहा कि अजहर से कहा गया है कि मुंबई हमले में उनकी सेवाओं की अब और जरूरत नहीं है। अधिकारी ने कहा, ‘अजहर को केवल मुंबई हमला मामले से हटाया गया है। बहरहाल बेनजीर हत्या जैसे अन्य मामलों में वह सरकार का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे।’ उन्होंने बताया कि अजहर जिस ‘तरीके से’ मामले को देख रहे थे उससे सरकार से उनका मतभेद बढ़ गया था।

अजहर और सरकार के बीच मतभेदों के संभावित कारणों को बताते हुए अधिकारी ने कहा, ‘इस मुकदमे में सरकार की अपनी एक खास सोच है और अजहर शायद सरकार के रुख के मुताबिक नहीं चल रहे थे। वह हाई प्रोफाइल मुकदमों में लॉ बुक के हिसाब से चल रहे थे।’ जब अजहर से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें मुंबई हमला केस से हटने को कहा गया है। उन्होंने कहा, ‘मैं अब इस केस से नहीं जुड़ा हुआ हूं।’ पाकिस्तान सरकार ने मुंबई हमला केस के चीफ प्रॉसिक्यूटर को हटाने के इस फैसले की कोई वजह नहीं बताई है और इसे रूटीन का मामला करार दिया है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘यह एक रूटीन मैटर लगता है। मुझे वजह को जानने के लिए किसी मुफीद व्यक्ति से पूछना पड़ेगा।’

बता दें कि मुंबई हमले का मुकदमा अपने 10वें साल में प्रवेश कर गया है लेकिन अभी तक पाकिस्तान में इसके किसी भी संदिग्ध को दंडित नहीं किया गया है। इसी से जाहिर है कि यह मुकदमा कभी भी पाकिस्तान की प्राथमिकताओं की सूची में नहीं था और पड़ोसी देश इसे ठंडे बस्ते में डालना चाहता है। जब से ऐंटी-टेररिजम कोर्ट (ATC) ने प्रॉसिक्यूशन के सभी 70 गवाहों के बयानों को दर्ज किया है तब से मुश्किल से इस केस की साप्ताहिक सुनवाई हुई है। प्रॉसिक्यूशन के मुताबिक जब तक भारतीय सरकार अपने 24 गवाहों को अपना बयान दर्ज कराने के लिए पाकिस्तान नहीं भेजती, तब तक इस केस की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी। इस बारे में पाकिस्तान ने भारत को लिखा भी है। जवाब में भारत ने कहा था कि उसने 7 आरोपियों के खिलाफ जो सबूत मुहैया कराए हैं, उसके आधार पर पाकिस्तान को मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ मुकदमा जरूर चलाना चाहिए। इसके बाद भी पाकिस्तानी अधिकारी इस 9 साल पुराने मामले के फैसले के लिए भारतीय गवाहों को भेजे जाने की जिद कर रहे हैं।

एक वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘मुंबई हमले का मुकदमा 2009 से ही इस्लामाबाद के एक ऐंटी-टेररिजम कोर्ट (ATC) में चल रहा है। देश के किसी भी ATC में शायद ही ऐसा कोई केस हो जो 9 साल से ज्यादा वक्त से चल रहा हो और अभी भी लंबित हो। ATC को स्पीडी ट्रायल के लिए बनाया गया है लेकिन इस मामले में ATC सेशंस कोर्ट की तरह काम कर रहा है जहां आमतौर पर सालों तक केस के फैसले नहीं होते।’ वरिष्ठ वकील ने बताया, ‘ऐसा लगता है कि सरकार इस मामले में फैसले के लिए किसी जल्दबाजी में नहीं है क्योंकि यह मामला उसके चिर-प्रतिद्वंद्वी भारत से जुड़ा हुआ है।’ उन्होंने कहा कि अगर सरकार गंभीर होती तो इस केस में बहुत पहले ही फैसला आ चुका होता।

मुंबई हमला मामले में लश्कर-ए-तैयबा के 7 आतंकियों- जकीउर रहमान लखवी, अब्दुल वाजिद, मजहर इकबाल, हमद अमीन सादिक, शाहिद जमील रियाज, जमील अहमद और यूनुस अंजुम के खिलाफ 2009 से ही हत्या के लिए उकसाने, हत्या की कोशिश, मुंबई हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के आरोप में मुकदमा चल रहा है। लश्कर सरगना लखवी को छोड़कर बाकी सभी 6 आतंकी रावलपिंडी की अदियाला जेल में बंद हैं। लखवी को 3 साल पहले इस केस में जमानत मिल गई थी और वह तभी से किसी अज्ञात जगह पर रह रहा है।

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