मुंबई
शिवडी के टीबी अस्पताल ने बेदर्दी से भरे सैकड़ों अमानवीय किस्से देखे हैं, जहां इलाज के लिए मरीज को दाखिल करने के बाद उसके रिश्तेदार एकाएक ‘लापता’ हो गए। अपनों के बेगाने हो जाने की शर्मनाक कहानियों के बीच एक नई इबारत लिखी गई। बीएमसी के शिवडी अस्पताल ने टीबी से हुई मौत के बाद एक लावारिस मरीज का अंतिम संस्कार कर मानवता की नई मिसाल पेश की है। मां के बाद ‘कोई नहीं’
इस मामले में बच्चा विवेक शर्मा (बदला हुआ नाम) केवल 10 साल का था। कई बार ऐसा होता है कि तीमारदारी करने आए उसके ‘अपने’ खुद को टीबी हो जाने से डर जाते हैं। इस मामले में ऐसा नहीं था। विवेक की मां की बहुत पहले ही मौत हो गई थी, जबकि पिता को भी कई गंभीर बीमारियों ने घेर रखा है। नतीजतन, वह भी विवेक का खयाल रखने में असमर्थ थे। शायद यही कारण रहा होगा कि विवेक घर से दूर रहने लगा था।
लावारिस आया था अस्पताल
बीमारी के दौरान न केवल मरीज को दवाओं की जरूरत पड़ती है, बल्कि उससे भी अधिक अपनों के साथ की। यह सब जीते-जी इस बच्चे को नसीब नहीं हुआ। शायद इसी वजह से विवेक घर से दूर रहने लगा था। टीबी से ग्रस्त विवेक को पिछले साल जुलाई में उपचार के लिए बांद्रा स्टेशन के पास से अस्पताल लाया गया था। मरीज को अस्पताल पहुंचाने वाले एक एनजीओ के अनुसार, वह लावारिस मिला था।
इलाज से भागता रहा
विवेक की स्थिति खराब देख उसे बीएमसी के वी.एन. देसाई अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां जांच में टीबी होने की बात सामने आई। बाद में उसे शिवडी टीबी अस्पताल भेज दिया गया। जहां मरीज को बीमारी से लगभग छुटकारा मिल गया था। हालांकि इसी बीच वह अस्पताल से भाग गया। जैसे-तैसे उसे फिर अस्पताल लाया गया, लेकिन वह फिर भाग गया।
फरवरी से पड़ी थी लाश
बच्चे की किस्मत इतनी खराब निकली कि मौत के बाद भी कोई हालचाल लेने या झांकने नहीं आया। इसी साल फरवरी में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद अस्पताल और एनजीओ ने कई बार विवेक के परिजन से संपर्क किया। हालांकि बीमारी और आर्थिक स्थिति सही न होने से उसका शव लेने कोई नहीं आया। नतीजतन, 3 महीने तक उसकी बॉडी अस्पताल में पड़ रही।
मौत में भी दिया साथ
अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर ललित आनंदे ने बताया, ‘2 दिन पहले हमें इस बारे में पता चला। इसके बाद हमने पुलिस से बात करके अस्पताल को अंतिम संस्कार करने का अधिकार देने को कहा।’ उन्होंने बताया, ‘वह महीनों अस्पताल में पड़ा रहा। पुलिस से अनुमति मिलने के बाद हमने उसका अंतिम संस्कार किया। अस्पताल में कई परिजन मरीज को छोड़ कर चले जाते हैं और सालों देखने तक नहीं आते।’
डॉ. आनंदे ने बताया कि महीनों इंतजार के बाद भी जब विवेक का शव लेने कोई परिजन नहीं आया, तो हमने खुद से उसका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया। आखिर कब तक एक मासूम के शव को हम अस्पताल में रखते।