मुंबई
एमयूटीपी प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2009-10 में मुंबई उपनगरीय नेटवर्क की सबसे तेज लोकल का परीक्षण किया गया था। सीमेंस कंपनी द्वारा किए गए इस टेस्ट में लोकल की अधिकतम गति 140 किमी प्रति घंटा तक पहुंची थी। हमेशा दौड़ने वाली मुंबई को जहां स्पीड वाली लोकल ट्रेनों की जरूरत थी, वहीं इस लोकल का यह हश्र हुआ कि आज विरार कारशेड में पड़ी सड़ रही है। 4 साल से कारशेड में
आमतौर पर अन्य लोकल ट्रेनों सी नजर आने वाली यह ट्रेन पिछले 4 सालों से विरार कारशेड में पड़ी है। इससे पहले यह किसी अन्य कारशेड में थी। इस 9 डिब्बों की लोकल का पूरा इंटिरियर सड़ चुका है। बोगी के अंदर गंदगी पसरी पड़ी है। साफ-सुथरे विरार कारशेड में यह लोकल कालीन पर किसी पैबंद जैसी लग रही है।
सूत्रों की मानें, तो जब इस लोकल को लाया गया था, तब कुछ पुर्ज ऑस्ट्रिया से आयात किए गए थे। इन पर 10 करोड़ रुपये खर्च किए गए। हाई स्पीड रैक के रिसर्च और इसे खरीदने के लिए अलग से 25 करोड़ रुपये खर्च किए गए। बहरहाल, जनता का सारा पैसा अब इस लोकल की शक्ल में विरार कारशेड़ में ‘डंप’ हो चुका है।
एक तकनीक, दो परिणाम
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘इस रैक में वैसी ही टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया जैसी एलएचबी कोच वाली राजधानी या शताब्दी में होता है। एक जैसी तकनीक होने के बावजूद भारतीय रेलवे के मानदंडों के विपरीत बताते हुए इस लोकल को किनारे कर दिया गया, जबकि राजधानी और शताब्दी दौड़ रही है।’
इस लोकल का ‘ठोक बजाकर’ परीक्षण किया गया था। 140 गति सीमा छूने के बाद भारतीय रेलवे बोर्ड द्वारा इसे विपरीत परिस्थितियों के चलाए जाने का निर्देश दिया गया था। यदि इस लोकल को पास कर दिया जाता, तो अब आने वाले सभी रैक्स भी इसी तकनीक पर आधारित होते। यह लोकल बोल्स्टर-लेस सिस्टम पर थी, जबकि मुंबई में एयर स्प्रिंग वाली लोकल ट्रेनें चलती हैं। अब एमआरवीसी इसके बोल्स्टर सिस्टम को सामान्य लोकल के साथ बदलना चाहती है।