मुंबई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को मुंबई पहुंच रहे हैं, जहां पर वह उन लोगों से मुलाकात कर उनका आभार व्यक्त करेंगे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान लड़ाई लड़ी थी। मुंबई में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने न्यूमरीन लाइंस स्थित बिरला मातोश्री सभागृह में एक कार्यक्रम का आयोजन किया है, जिसमें पीएम मोदी लोगों को संबोधित भी करेंगे। सुबह 10 बजे से आयोजित इस कार्यक्रम को ‘1975 आपातकाल: लोकतंत्र की अनिवार्यता- विकास मंत्र- लोकतंत्र’ नाम दिया गया है। कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रावसाहेब दानवे, मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार और अन्य लोग शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) की तीसरी सालाना बैठक का भी शुभारंभ करेंगे।
‘आपातकाल की काली रात भुलाई नहीं जा सकती’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 25 जून को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा था कि इस तरह की काली रात कभी नहीं भुलाई जा सकती। उन्होंने कहा था कि उन घटनाओं को याद करना जरूरी है, जिनके चलते लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा था। जब इंदिरा की आवाज में देश ने सुना आपातकाल का संदेश
गौरतलब है कि आज से करीब 43 साल पहले इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। 25 जून, 1975 को लगा आपातकाल 21 महीनों तक यानी 21 मार्च, 1977 तक देश पर थोपा गया। 25 जून और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर करने के साथ ही देश में पहला आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना, ‘भाइयो और बहनो, राष्ट्रपतिजी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।’।
नेताओं की गिरफ्तरियां
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जेलों में जगह नहीं बची।
प्रेस पर भी लगा दी गई थी सेंसरशिप
आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई। प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। यह सब तब थम सका, जब 23 जनवरी, 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई।