मुंबई
मराठा आरक्षण पर याचिका की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह 14 अगस्त तक मराठा आरक्षण पर अंतिम शपथ-पत्र अदालत में पेश करे। याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार ने अदालत में यह फरियाद की कि उन्हें मराठा आरक्षण से संबंधित डेटा जमा करने के लिए वक्त लगेगा। अदालत को बताया गया कि डेटा जमा करने के लिए पांच एजेंसियां नियुक्त की हैं, इसलिए अदालत उन्हें सितंबर तक की मोहलत दे। अदालत ने सरकार और आयोग के इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘आखिर इतने दिन से आप लोग क्या कर रहे हैं?’ अदालत ने आदेश दिया कि 14 अगस्त से पहले अंतिम शपथपत्र अदालत में दायर किया जाए। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और अनुजा प्रभुदेसाई की खंडपीठ में हुई।
‘बिना शपथ-पत्र पड़ रहा असर’
बता दें कि याचिकाकर्ता विनोद पाटील ने मराठा आरक्षण को लेकर एक याचिका दायर कर रखी है। 19 सितंबर 2016 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हाई कोर्ट को आदेश दिया था कि वह जल्द से जल्द इस मामले में फैसला दे। याचिकाकर्ता के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बॉम्बे हाई कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई चल रही है, परंतु पिछले कई दिनों से राज्य सरकार द्वारा इस मामले में शपथ पत्र दाखिल न किए जाने से इसकी सुनवाई पर असर पड़ रहा है।
‘छात्रों को नुकसान’
राज्य सरकार ने यह मामला राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के जिम्मे कर दिया है। पिछले कई महीने से यह मामला आयोग में भी लंबित है। इसके बाद इस मामले के त्वरित निपटारे के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई, जिसमें यह कहा गया कि मराठा आरक्षण में होने वाले विलंब से मराठा समाज के विद्यार्थियों का शैक्षणिक नुकसान हो रहा है। सरकार के धीमे रवैये को देखते हुए अदालत सरकार को तय समय के भीतर इस मामले को हल करने का निर्देश दे, ताकि लाखों विद्यार्थियों को नुकसान से बचाया जा सके। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को उक्त आदेश दिया।