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आरुषि और सुनंदा मामलों की तरह आगे बढ़ेगी ‘सामूहिक आत्महत्या’ की जांच?

नई दिल्ली
पूरे देश को दहला देने वाले बुराड़ी ‘सामूहिक आत्महत्या’ कांड की जांच भी आरुषि और सुनंदा हत्या मामलों की तरह ही आगे बढ़ाई जा सकती है। क्राइम ब्रांच ने अब इस मामले में मानसिक स्वास्थ्य एक्सपर्ट्स से राय ली है। उन्होंने कहा है कि भाटिया परिवार के किसी साइकॉटिक डिसऑर्डर से ग्रस्त रहने के संकेत मिलते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसी के चलते उनके ‘लीडर’ के बहकावे में आकर सबकी जान चली गई। एक्सपर्ट्स से बात करने के बाद पुलिस जांच की नई तकनीक पर विचार कर रही है। पुलिस अब साइकॉलजिकल अटॉप्सी की योजना बना रही है, इसके जरिए यह पता लगाया जा सकेगा कि उस रात आखिर क्या हुआ होगा। इस तकनीक का इस्तेमाल सुनंदा पुष्कर और आरुषि तलवार की हत्या के मामलों में किया गया था। पुलिस विद्या सागर इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरो साइंसेज के डॉक्टरों के संपर्क में है और मास सूइसाइड को समझने में जुटी हुई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि शेयर्ड साइकॉटिक डिसऑर्डर की शुरुआत एक या कुछ लोगों से होती है। एक ऑफिसर के मुताबिक, ‘डायरी में लिखी बातों के अनुसार इस केस में ललित भाटिया अपने मृत पिता से बातें किया करता था।’ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ललित के बाद धीरे-धीरे उनकी पत्नी टीना इस डिसऑर्डर की शिकार हुई होंगी और शायद बाद में दोनों ने पूरे परिवार को इसके लिए तैयार किया होगा। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि भाटिया परिवार के रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने बताया कि बाद में ललित अपने पिता की तरह बोलने लगे थे। पिता की तरह बोलने की वजह से परिवार परेशान नहीं हुआ बल्कि उन्हें सुनने लगा और उनके निर्देशों का पालन करने लगा। ऐसा लगता था कि ललित को परिवार का ‘मुखिया’ मानना शुरू कर दिया गया था। परिवार को ऐसा लगता था कि पिता 45 साल के बेटे के मुंह से बोल रहे हैं।
मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट रजत मित्रा ने कहा कि शेयर्ड साइकॉटिक डिसऑर्डर में दो या उससे अधिक लोग शामिल होते हैं। इनमें एक लीडर की तरह बर्ताव करता है और अन्य पर अपने विचार थोपता है। ऐसे मामलों में विपरीत सेक्स के लोग प्रचंड अनुयायी होते हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो कई मामलों में फॉलोअर्स जिंदा रहने के लिए भी लीडर पर निर्भर करते हैं।

मित्रा ने बताया कि अक्सर फॉलोअर्स लीडर के प्रति अंधभक्ति का भाव रखते हैं और जैसा वह कहता है, वैसा करने लगते हैं। मनोचिकित्सक जयंती दत्ता ने बताया कि ऐसे मामलों में फॉलोअर्स धीरे-धीरे अपनी निर्णय लेने की क्षमता खो देते हैं और लीडर जैसा कहता है वैसा ही करते हैं।

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