सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ (फर्जी खबरों) की भरमार की वजह से देश के कई हिस्सों में निर्दोष लोगों की पीट पीट कर हत्या कर दी गई. भारत सरकार ने वॉट्सएप को अपने प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग होने से रोकने में नाकाम रहने पर मंगलवार को आगाह किया था.
वॉट्सएप ने बुधवार को भारत सरकार को भेजे जवाब में कहा है कि वह इस तरह की घटनाओं को लेकर ‘भयभीत’ है. वॉट्सएप ने फेक न्यूज और अफवाहों के ‘आतंक’ के खिलाफ समुचित कदम उठाने का आश्वासन भी दिया है.
बता दें कि मंगलवार को भारत सरकार ने अपने बयान में सख्त रुख अपनाते हुए इस मैसेजिंग सर्विस को आगाह किया था और गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप लगाया था. वॉट्सएप ने भारत सरकार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वो लोगों की सुरक्षा को लेकर गहराई से चिंतित है और साथ ही उसने फेक न्यूज और अफवाहों के आतंक से लड़ने के कदम उठाए हैं.
वॉट्सएप ने चिट्ठी में कहा है कि हम हिंसा की इन खौफनाक घटनाओं को लेकर भयभीत है और आपने जो अहम मुद्दे उठाए हैं उन पर जवाब में तेजी से कार्रवाई करना चाहते हैं. कंपनी के मुताबिक वो भारतीय शोधकर्ताओं के साथ समस्या को अच्छी तरह समझने के लिए काम कर रहे हैं. साथ ही ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं जिससे फर्जी संदेशों को फैलने से रोका जा सके.
दरअसल ना सिर्फ वॉट्सएप बल्कि सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म्स को भी फर्जी खबरों के प्रसार को प्रभावी ढंग से ना रोक पाने के लिए हालिया वक्त में भारी दबाव से गुजरना पड़ रहा है. व्हाट्सएप की पेरेंट कंपनी फेसबुक पहले ही मान चुकी है कि फेक न्यूज बड़ी चुनौती है. फेसबुक की ओर से इस बारे मे कई कदम भी उठाए जा चुके हैं.
फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने इस साल 19 जनवरी को अपनी पोस्ट में आगाह किया था, ‘दुनिया में आज बहुत ज्यादा सनसनी, गलत सूचनाएं और ध्रुवीकरण है. सोशल मीडिया लोगों को पहले की तुलना में कहीं तेजी से सूचनाएं पहुंचाने का काम कर रहा है. और हमने इन समस्याओं को सही तरह से नहीं निपटा तो हम इन समस्याओं को और विकराल होता देखेंगे.’ जकरबर्ग की ये भविष्यवाणी भारत में खतरनाक ढंग से सही भी साबित हो गई.
बता दें कि सोशल प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों को अगवा करने की अफवाहों के चलते एक साल में कम से कम 29 लोगों को पीट पीट कर मार डाला गया.
ऐसे में सवाल ये है कि क्या टेक्नोलॉजी कंपनियां फेक न्यूज़ की चुनौती से निपटने के लिए उस स्तर पर कोशिशें नहीं कर रही हैं जिस स्तर पर उन्हें करनी चाहिए. दिल्ली स्थित साइबर एक्सपर्ट जितिन जैन का कहना है, ‘अगर यही कंपनियां एडवरटाइजिंग के लिए इंटरनेट के इस्तेमाल के आपके तौर तरीकों को सटीकता के साथ ट्रैक कर सकती हैं, आपको बैठकों, फ्लाइट सूचनाओं और होटल बुकिंग्स के लिए अपडेट करने के लिए आपकी मेल्स को स्कैन कर सकती हैं तो वो क्यों नहीं हिंसा, फेक न्यूज और मॉर्फ्ड तस्वीरों-वीडियो से जुड़े कंटेट को फिल्टर कर सकतीं?’
जैन कहते हैं कि इन कंपनियों का मुख्य फोकस उन क्षेत्रों पर रहता है जहां से वो धन अर्जित कर सकें. ऐसे में क्या तकनीक के सहारे फेक न्यूज को छान कर अलग करने के लिए फुलप्रूफ कदम उठाए जा सकते हैं? इसका जवाब इस बात में छुपा है कि क्या फेक या फर्जी है और क्या नहीं, इसे परिभाषित किया जाए और इसकी पुख्ता पहचान की जाए.
फेसबुक की सोशल प्लेटफॉर्म के न्यूजरूम पेज पर एक शॉर्ट फिल्म ‘फाइट अगेंस्ट मिसइंफॉर्मेंशन’ इन्हीं सब सवालों और जिज्ञासाओं का जवाब ढूंढने की कोशिश करती है.