नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद-राम मंदिर भूमि विवाद मामले में आज (शुक्रवार को) से फिर से सुनवाई शुरू करेगा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर की विशेष पीठ ने 17 मई को हिन्दू संगठनों की तरफ से पेश दलीलें सुनी थीं, जिनमें उन्होंने मुस्लिमों के इस अनुरोध का विरोध किया था कि मस्जिद को इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का आंतरिक भाग नहीं मानने वाले 1994 के फैसले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाए.
अयोध्या मामले में मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल और निधन के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा प्रतिनिधित्व पाने वाले एम सिद्दीकी ने एम इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 में आये फैसले के कुछ निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने पीठ से कहा था कि अयोध्या की जमीन से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में की गई टिप्पणियों का, मालिकाना हक विवाद के निष्कर्ष पर प्रभाव पड़ा है.
हालांकि हिन्दू संगठनों का कहना है कि इस मामले को सुलझाया जा चुका है और इसे फिर से नहीं खोला जा सकता. शीर्ष अदालत की विशेष पीठ चार दीवानी वादों पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर विचार कर रही है.
साल के अंत तक फैसला आने की उम्मीद
विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने उम्मीद जतायी है कि इस वर्ष के अंत तक सभी बाधाओं को दूर करते हुए कानून एवं संविधान सम्मत तरीके से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो सकता है. विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष ने कहा, ‘उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट आयोध्या मामले की सुनवाई रोजाना आधार पर करेगा. अगर ऐसा होता है तब इस मुद्दे पर सितंबर तक फैसला आ सकता है. ऐसा मुझे विश्वास है और यह बात मैं परिस्थितजन्य मूल्यांकन के आधार पर कह रहा हूं.’
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था बराबर बांटने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट से पहले विवादित भूमि मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने बहुमत के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल की भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड , निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था.