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गौरी लंकेश समेत कई मर्डर के आरोपियों का ‘सनातन कनेक्शन’?

मुंबई
नरेंद्र दाभोलकर से लेकर गोविंद पानसरे और एम.एम.कलबुर्गी से लेकर गौरी लंकेश तक…पिछले कुछ वर्षों में हुई सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की इन हत्याओं ने देश में सनसनी फैला दी थी। अब ये सारे मामले सुलझते दिख रहे हैं। पिछले एक पखवाड़े में जो आरोपी गिरफ्तार हुए हैं, वे कहीं न कहीं सनातन संस्था से जुड़े हुए हैं या उनकी विचारधारा से प्रभावित दिख रहे हैं। क्या सनातन पर तत्काल बैन लगाया जाना चाहिए या सारा फोकस पहले सबूत जुटाने पर रहना चाहिए।
सवाल- नरेंद्र दाभोलकर मर्डर से गौरी लंकेश की हत्या तक सनातन संस्था का नाम आ रहा है। पहले भी यह संस्था सवालों में रही है। क्या आपको लगता है कि सनातन पर बैन का अब सही वक्त आ गया है?

जवाब- मुझे लगता है कि पहले सभी केसों की गहराई से जांच पूरी की जाए। आरोप पत्र के लिए सारे सबूत जुटाए जाएं। यदि सबूतों में सनातन संस्था के लिंक साफ दिख रहे हों, तो उस पर बैन लगाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। अतीत में हमने सिमी व अन्य दहशत फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध लगाया भी है। सिमी हो या सनातन, हमें पक्षपात नहीं करना चाहिए। जो संगठन, भले ही वे हिंदू, मुस्लिम या किसी भी धर्म से ही क्यों न जुड़े हों, यदि समाज के लिए घातक या समाज विरोधी काम कर रहे हैं और लोगों को मार रहे हैं, उन पर हमें किसी तरह की कोई उदारता नहीं बरतना चाहिए। यदि वे कानून के हिसाब से नहीं चल रहे हैं, तो हमें कानून के हिसाब से चलना चाहिए। यदि कानून में बैन जरूरी है, तो उस पर अमल होना ही चाहिए लेकिन जल्दबाजी में नहीं, पूरी जांच के बाद ही।

सवाल- …मतलब आप बैन के लिए जल्दबाजी के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं।

जवाब- नहीं, मेरा ऐसा आशय नहीं है। मैं कुछ और कहना चाह रहा हूं। अगर चारों केसों में समान धागा है, तो सरकार बैन पर कभी भी फैसला ले सकती है। मैं पहले लंबी जांच और आरोप पत्र के लिए व्यापक सबूतों की इसलिए पैरवी कर रहा हूं, क्योंकि मेरे मानना है कि सभी केस, चाहे गौरी लंकेश का हो या नरेंद्र दाभोलकर मर्डर का या नालासोपारा व पुणे में मिले बम या आर्म्स जब्ती का, आरोपियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा जाएगा इसीलिए मेरा कहना है कि बैन पर कुछ दिन बाद भी फोकस किया जाए, तो चलेगा, लेकिन फिलहाल तत्काल फोकस गहराई से जांच और सबूतों को जुटाने पर होना चाहिए।

सवाल- चाहे दाभोलकर केस हो, कलबुर्गी, पानसरे व गौरी लंकेश मर्डर केस। अतीत में भी कई आरोपी पकड़े गए, छोड़े गए। क्या आपको लगता है इस बार जांच सही दिशा में चल रही है?

जवाब- मुझे लगता है कि सारे केसों में कार्य प्रणाली एक सी थी। चारों केसों में आरोपी मोटरसाइकल से आए। दनादन गोलियां चलाईं और भाग गए। चूंकि चारों केसों में यह समान बात निकली, इसलिए इसका यह भी मतलब निकलता है कि आरोपियों ने अपने निशाने पर बराबर नजर रखी। उनके मूवमेंट्स बराबर चेक करते रहे। अपने टारगेट की उन्होंने शिनाख्त की। उसके बाद सभी को यानी चारों को निशाना बनाया गया इसीलिए चारों केसों में कुछ न तो कुछ समानता है।

सवाल- जो मीडिया में खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक कर्नाटक एसआईटी को पहला ब्रेक मिला, उसके बाद उसने महाराष्ट्र एटीएस को और फिर एटीएस की तरफ से सीबीआई को सूचनाएं शेयर की गईं। क्या आपको लगता है कि किसी बड़े केस में सिर्फ एक या दो एजेंसी का ही काम ज्यादा होता है या खुफिया इनपुट्स को देश की सभी पुलिस को बराबर शेयर किया जाता है?

जवाब- अगर मान लीजिए कि कर्नाटक से टिप आ भी गई, तो भी तो सोच लीजिए कि महाराष्ट्र एटीएस ने कितना अच्छा काम किया। मुझे लगता है कि महाराष्ट्र पुलिस व एटीएस के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं पिछले कई सालों से फॉलो कर रहा हूं। मुझे मालूम है कि महाराष्ट्र पुलिस ने हर संभव कोशिश की थी केस डिटेक्ट करने की। जब नरेंद्र दाभोलकर का मर्डर हुआ तो पुणे में गुलाब राव पोल कमिश्नर थे। जब गोविंद पानसरे की हत्या की गई, तो कोल्हापुर में मनोज कुमार शर्मा एसपी थे। लाखों कॉल्स चेक किए गए। दोनों शहरों में जितने भी लॉज हैं, वे चेक किए। कई खबरी लगाए गए। लोकल जांच एजेंसियों के अलावा स्टेट सीआईडी व एटीएस ने लगातार समानांतर जांच की। कुछ उस वक्त भी सुराग मिले थे, लेकिन उस वक्त हमारी किस्मत खराब थी, इसलिए आरोपियों तक नहीं पहुंच सके थे।

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