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रेप पीड़‍िता को नहीं म‍िली गर्भपात की इजाजत, हाई कोर्ट ने खारिज की याच‍िका

मुंबई
सतारा रेप पीड़‍ित की गर्भपात के ल‍िए दाख‍िल याच‍िका पर सुनवाई करते हुए बॉम्‍बे हाई कोर्ट ने सोमवार को अपना फैसला सुना द‍िया। हाई कोर्ट ने पीड़‍ित की याच‍िका पर सुनवाई करते हुए गर्भपात की मांग को नामंजूर कर द‍िया। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ’28 हफ्ते के गर्भ का अबॉर्शन करने से पीड़‍ित की जान को खतरा हो सकता है। ऐसे में कोर्ट गर्भपात की मंजूरी नहीं दे सकता।’ बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) ऐक्ट में अधिकतम 20 हफ्ते के गर्भ को ही गिराने की इजाजत है।

कोर्ट के जस्टिस अभय ओका और महेश सोनक की बेंच ने रेप पीड़ित की याचिका पर फैसला सुनाते हुए गर्भपात की मांग को स‍िरे से खार‍िज कर दिया। गौरतलब है कि रेप की शिकार सतारा की एक कॉलेज छात्रा है, ज‍िसने गर्भपात की इजाजत मांगी थी। गर्भपात की याच‍िका के बाद हाई कोर्ट ने एक छह सदस्‍योंं का मेडिकल पैनल गठित किया था। इस मेड‍िकल पैनल के डॉक्टरों ने याच‍िका पर गौर करते हुए कोर्ट को सलाह दी कि पीड़‍ित का अगर इस समय गर्भपात हुआ तो इससे उसकी जान को खतरा है।

वहीं पीड़ित के वकील कुलदीप निकम ने अपनी दलील में कहा, ‘पीड़ित को जीने का अधिकार है और इसमें सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार शामिल है। पीड़‍ित और उसके पर‍िजनों को खतरा लेने में कोई आपत्‍त‍ि नहीं है। गर्भपात की इजाजत म‍िलने से पीड़‍ित को लंबे समय के आघात से बचाया जा सकता है।’ वहीं उनके इस तर्क पर कोर्ट ने कहा, ‘इस मामले में 6 वर‍िष्‍ठ मेड‍िकल व‍िशेषज्ञों की सलाह को अनदेखा करने के ल‍िए उनके पास कोई वजह नहीं है।’ कोर्ट ने कहा क‍ि गर्भ में पल रहा बच्‍चा सामान्‍य है और उसमें क‍िसी भी तरह की असामान्‍यता नहीं है। ऐसे में गर्भपात कराना उच‍ित नहीं होगा।

इस मामले में सरकारी वकील अभ‍िनंदन वाग्यानी ने कहा, ‘ऐसे मामले में पीड़‍ित को अस्पताल में डॉक्टरों की देख-रेख में तबतक रखा जाए जब तक पीड़‍ित श‍िशु को जन्‍म नहीं दे देती। जन्‍म के बाद श‍िशु को चाइल्‍ड वेलफेयर कम‍िटी के सामने पेश करके उसे गोद लेने की प्रक्र‍िया में डाल सकते हैं।’

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