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दहेज केस में फौरी गिरफ्तारी पर पुलिस की पावर बहाल

ट्रेनिंग पाए हुए पुलिस अफसर ही करेंगे जांच
नई दिल्ली: दहेज के लिए सताने के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले साल के फैसले में सुधार किया है और पत्नी की शिकायत पर पति व ससुरालियों को तुरंत गिरफ्तारी से मिली छूट खत्म कर दी है। अदालत ने परिवार कल्याण समिति के प्रावधान को निरस्त कर दिया है और गिरफ्तारी का फैसला कुछ शर्तों के साथ पुलिस के विवेक पर छोड़ दिया है।
आईपीसी की धारा 498A के तहत आने वाले ऐसे मामलों में अब पति और ससुराल पक्ष के लोगों की सीधे गिरफ्तारी भी हो सकेगी, बशर्ते पुलिस को पहली नजर में पर्याप्त कारण और सबूत दिखें। सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों की पीठ ने 27 जुलाई 2017 के अपने आदेश में ऐसे मामले परिवार कल्याण समिति के पास भेजना जरूरी बना दिया था और समिति की रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी न करने को कहा था। लेकिन शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस प्रावधान को कानून के दायरे से बाहर बताते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने पुलिस को हिदायत दी है कि ऐसे मामलों में सीआरपीसी की धारा 41 और 41A के प्रावधान लागू होंगे, जिनमें कहा गया है कि 7 साल या उससे कम सजा वाले अपराधों में पुलिस ठोस कारण होने पर ही गिरफ्तारी करे और गिरफ्तारी के कारण भी बताए। गौरतलब है कि दहेज कानून में अधिकतम 3 साल की सजा का ही प्रावधान है।
परिवार कल्याण समिति बनाने और उसी के आदेश पर गिरफ्तारी के सर्वोच्च न्यायालय के जुलाई 2017 के फैसले का काफी विरोध हुआ था। महाराष्ट्रसर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के डीजीपी को निर्देश दिया है कि वे छानबीन करने वाले पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग देकर अदालत के फैसले के बारे में बताएं। ऐसी ट्रेनिंग पाने वालों पुलिस अफसरों को ही दहेज से जुड़े मामलों की जांच सौंपी जाएंगी। हालांकि गिरफ्तारी, पासपोर्ट जब्त करने, रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाने जैसी कार्रवाई रूटीन में नहीं होंगी। बेहद जरूरी होने पर ही पुलिस ऐसा ऐक्शन लेगी।
कई बार कानून का दुरुपयोग कल्पना से बाहर तक होता है। बदला लेने के लिए बुजुर्गों और दूर के रिश्तेदारों तक को लपेट दिया जाता है। ऐसी स्थिति समाज के लिए घातक हैं। यह विधायिका की जिम्मेदारी है कि वह इन्हें रोकने का कानून बनाए। – सुप्रीम कोर्ट
पहले से जमानत करा सकेंगे आरोपी
सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न के मामलों में अग्रिम जमानत के प्रावधान को कायम रखा है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोपियों को जमानत देते वक्त शर्तें लगाई जा सकती हैं, लेकिन दहेज से जुड़ी चीजों की रिकवरी होना जमानत रद्द होने का कारण नहीं हो सकता।
के अहमदनगर की महिला वकीलों के एनजीओ ‘न्यायाधार’ ने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सुनवाई के बाद मुख्य नयायाधीश की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने 23 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब इसके प्रावधान को रद्द कर दिया गया है।

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