मुंबई: संयुक्त मानवाधिकार फेडरेशन (यूनायटेड हूमन राइट्स फेडरेशन) ने मुंबई में आग लगने की घटनाओं और उनमें भारी स्तर पर जान-माल के नुकसान को देखते हुए इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है और इस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। फेडरेशन ने आग लगने की घटनाओं पर एक विस्तृत अध्ययन कर उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की है।
फेडरेशन के अनुसार, पिछले साल 29 दिसंबर को लोअर परेल की कमला मिल के दो पबों-‘1 अबॉव’ और ‘मोजो’ में आग लगने की घटना के बाद से अब तक मुंबई में आग लगने की 22 बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिनमें 66 लोगों की मौत हो चुकी है। फेडरेशन ने मुंबई की इमारतों में आग लगने की घटनाओं पर अपने एक अध्ययन में कहा है कि इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि सरकार, बिल्डर और सरकारी एजेंसियां लालच, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के चलते आम आदमी के प्रति बिल्कुल भी संजीदा नहीं हैं। इस मानवतावादी संगठन के अनुसार, विकसित देशों में आग लगना मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है। उदाहरण के लिए लोअर परेल में पैलेस रॉयली नाम की 88 मंजिला हाईराइज बिल्डिंग बन रही है, जो मुंबई की सबसे ऊंची अट्टालिका होगी। जबकि हमारे दमकल विभाग के पास केवल 30 मंजिल तक की आग बुझाने वाली सीढ़ी मौजूद है। अगर दुर्भाग्य से पैलेस रॉयली में कभी आग लग जाए, तो दोषी कौन होगा/ ऐसी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। यूएचआरएफ ने सभी हाईराइज बिल्डिगों, होटल-रेस्त्रांओं और पबों की नियमित समय पर सेफ्टी ऑडिट कराने को कहा है।
मुंबई देश की आर्थिक और बैकिंग राजधानी है और यहां आग लगने की इन घटनाओं से देश-विदेश में इसका नाम बदनाम हुआ है। होटल असोसिएशन के एक पदाधिकारी ने बताया कि कमला मिल परिसर के दो पबों में आग लगने के बाद अब पब, रेस्त्रांओं और होटल में आने वाले ग्राहक सुरक्षा के बारे में पूछते हैं कि आपात निकास कहां है/ उनका धंधा बहुत कम हो गया है। कई हाई राइज बिल्डिगों में आग लगने की घटनाओं से बिल्डर परेशान हैं। ग्राहक ज्यादा उत्साहित नहीं है। बिल्डर महंगे और आधुनिक सेफ्टी उपकरण लगाने को इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि इससे लागत बढ़ जाती है, जो मंदी के इस दौर में ग्राहकों को और ज्यादा हतोत्साहित कर सकती है।
एक एनजीओ ‘जनहित मंच’ ने बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करके रिफ्यूजी एरिया के बारे में पक्की नीति बनाने की मांग की है।