नई दिल्ली, महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में छह सितंबर से डिप्थीरिया की वजह से बच्चों की मौत हो रही है, अब जाकर अस्पताल में डिप्थीरिया के इलाज के लिए दवा पहुंची है। दवा के अभाव में अब तक 18 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। अभी भी कई बच्चों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। डिप्थीरिया के बैक्टीरिया की वजह से दो सीरियस बच्चों को एलएनजेपी में रेफर किया गया है। वहीं वाल्मीकि में फिलहाल 58 बच्चे ऐडमिट हैं, जिसमें से तीन से चार बच्चे सीरियस हैं। कसौली से भेजे गए 200 ऐंटी सीरम इंजेक्शन अस्पताल पहुंचाए जा चुके हैं। जरूरतमंद बच्चों को अब अस्पताल की तरफ से ही इंजेक्शन देने का काम शुरू कर दिया गया है। रविवार को एमसीडी की तरफ से डिप्थीरिया को लेकर बयान जारी किया गया, जिसके अनुसार सितंबर में अब तक कुल 147 बच्चे ऐडमिट हुए हैं। इनमें से यूपी के सबसे ज्यााद 122 बच्चे ऐडमिट हुए हैं, जबकि दिल्ली के 14 बच्चों में भी यह बैक्टीरिया पाया गया है। एक बच्चे के परिजन ने बताया कि यहां पर अभी भी जरूरी इंतजाम नहीं हैं। न तो साफ-सफाई है और न ही डॉक्टर और स्टाफ हैं। शाम चार बजे के बाद से सुबह तक केवल दो डॉक्टर और दो नर्स होते हैं। इन चारों लोगों के ऊपर इतने सारे मरीज हैं। एक बच्चे के पिता ने बताया कि जिस दिन एमसीडी के अधिकारी आए थे वो सभी मास्क लगाकर आए थे, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इन्फेक्शन न हो जाए लेकिन यहां पर ऐडमिट न तो किसी बच्चे को मास्क दिया जाता है और न ही परिजनों को। अपने बच्चे के इलाज के लिए आए लोगों को भी डर है कि उन्हें यह बीमारी न हो जाए लेकिन प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं। प्रशासन को यहां पर तुरंत स्टाफ बढ़ाने चाहिए और इन्फेक्शन को कंट्रोल करने के लिए भी व्यवस्था करनी चाहिए।
‘7-8 दिन बीत जाने के बाद सीरम भी नहीं दे सकता गारंटी’
इलाज करने वाले एक डॉक्टर ने बताया कि यह एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो तेजी से फैलता है। अगर मरीज की पहचान होने में सात से आठ दिन लग गए तो उसके लिए यह खतरनाक हो जाता है और ऐसे बच्चों के लिए ऐंटी डॉट सीरम अनिवार्य है। अगर इन्फेक्शन होने के एक-दो दिन के भीतर अस्पताल पहुंच जाएं तो उन्हें हम ऐंटीबायॉटिक्स से कंट्रोल कर सकते हैं और ऐसे बहुत से बच्चे ठीक भी हो रहे हैं। इसलिए लोगों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए और जैसे ही लक्षण दिखें उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर आना चाहिए। बैक्टीरिया फैलने के सात-आठ दिन बाद तो सीरम का भी फायदा होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह बच्चों के अपने इम्यून सिस्टम पर निर्भर है, कुछ ठीक हो जाते हैं और कुछ ठीक नहीं हो पाते।