नई दिल्ली : अयोध्या मामले से संबंधित एक पहलू को संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट 28 सितंबर को फैसला सुना सकता है। अभी इस पर सुनवाई की जानी है कि अयोध्या की जमीन किसकी है। दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। महिलाओं के खतने (खफ्ज) के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे 5 जजों की संवैधानिक पीठ को भेज दिया है। यह प्रथा दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में पाई जाती है। केंद्र सरकार भी इस प्रथा के विरोध में है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से महिलाओं का खतना किए जाने की प्रथा पर भारत में पूरी तरह बैन लगाने की मांग की गई है।
भारत ने ही पहली बार दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। इसी संदेश को हमने संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित दिया, ताकि कानून बनाने वाले इसे भूलें नहीं। ऐसी महान सोच वाले हमारे देश में भीड़-हिंसा को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च अदालत ने भीड़ की हिंसा और गोरक्षा के नाम पर हिंसा के खिलाफ जो सख्त रूख अख्तियार किया है, वह हमारे गौरवशाली अतीत और बेहतर भविष्य की सुरक्षा का भरोसा दिलाता है।• सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को कहा था कि विकट करतूत वाले भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती• अदालत ने केंद्र सरकार से