मुंबई : राज्य में आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण को रोकने के लिए सरकार ने जो बजट निर्धारित किया था वह बजट ही कुपोषित हो गया है। यानी कुपोषण रोकने के लिए निर्धारित बजट में तकरीबन ६० प्रतिशत कटौती की गई है। केवल ४० प्रतिशत रकम ही आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण रोकने के लिए दी जा रही है।
सूत्रों के अनुसार कुपोषण रोकने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में सप्लाई होनेवाले चावल व गेहूं में २०१६ से २०१८ के दरम्यान भारी कटौती की गई है। चावल में ६१.२० प्रतिशत और गेहूं में ७८.२२ प्रतिशत की कटौती की गई है। जनवरी से मार्च, २०१६ की। तिमाही में बाल विकास आयुक्तालय के यहां ६४.७० क्विंटल चावल व १६० क्विंटल गेहूं पालघर जिला को उपलब्ध हुआ था। जुलाई, २०१७ में घटकर ३३.९ क्विंटल चावल और १८ क्विंटल गेहूं संपूर्ण जिला के लिए महिला व बाल विकास विभाग ने मंजूर किया था। अक्टूबर से दिसंबर, २०१८ के दरम्यान ५२४ क्विंटल गेहूं और ९९१ क्विंटल चावल मंजूर किया गया है। कुपोषित बालकों के लिए निर्धारित बजट में भारी कटौती करके आदिवासियों के साथ असंवेदनशीलता का परिचय दिया गया है।
कुपोषण को लेकर राज्य में हुई मौत आदि का मामला विधानसभा में विरोधी दल नेता राधाकृष्ण विखे पाटील व अन्य सदस्यों द्वारा उपस्थित किया गया था। महिला व बालविकास मंत्री पंकजा मुंडे ने लिखित उत्तर में स्वीकार किया है कि पालघर जिला के ग्रामीण भाग में जुलाई, २०१८ में कुपोषण सहित अन्य कारणों से ११९ बालकों की मौत हुई है। कुपोषित ११९ बालकों की मौत का मामला सितंबर, २०१८ में प्रकाश में आया था। पंकजा मुंडे ने लिखित उत्तर में स्पष्ट किया है कि उक्त बालकों की कुपोषण के अलावा सांस लेने में तकलीफ, न्यूमोनिया, सांप काटने आदि कारणों से हुई है। कुपोषण से होनेवाली मौतों को रोकने के लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाए गए हैं, ऐसा पंकजा मुंडे ने लिखित उत्तर में स्पष्ट किया है।