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इंसान के शरीर में भी सूअर का दिल धड़केगा, यानी अब हृदय के लिए अंगदाताओं पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं

मुंबई : दिल की गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों की जान बचाने का एकमात्र उपाय हृदय प्रत्यारोपण है। वर्तमान में मुंबई की स्थिति यह है कि मरीजों के अनुपात में डोनर बहुत ही कम हैं। नतीजतन डॉक्टरों व मरीजों के अंगदान की बाट जोहनी पड़ती है। कुछ खुशनसीबों को हृदय मिल जाता है लेकिन कई को अपनी जान गंवानी पड़ती है लेकिन शोधकर्ताओं ने अब इसका भी विकल्प खोज लिया है। शोधकर्ताओं ने हाल ही में सूअर का दिल बबून (लंगूर) में प्रत्यर्पित किया और वे इसमें सफल भी रहे है। माना जाता है कि सूअर और इंसानी शरीर के अवयव काफी हद तक मेल खाते हैं, ऐसे में शोधकर्ताओं ने अब डॉक्टरों में यह उम्मीद जगा दी है कि आनेवाले कुछ वर्षों में इंसान के शरीर में भी सूअर का दिल धड़केगा। यानी अब हृदय के लिए अंगदाताओं पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।
बता दें कि हिंदुस्थान में हृदय रोग के चलते वर्ष २०१६ में लगभग ६० लाख लोगों की मृत्यु होने की बात विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने रिपोर्ट में कही थी। फास्ट फूड का सेवन, व्यसन और सुस्त जीवनशैली के कारण मुंबई में हर वर्ष हजारों लोगों में दिल की बीमारी होती है। अंत में दिल इतना कमजोर हो जाता है कि व्यक्ति की जान बचाने के लिए हृदय प्रत्यारोपण ही एक मात्र विकल्प बचता है लेकिन उससे भी बड़ी बाधा बीमारों की संख्या के अनुपात मंन दिल का न मिलना है। ऐसे में हृदय रोग से ग्रसित मरीजों की जान बचाई जा सके इसको लेकर इस शोध में जुटे हुए है।
आखिरकार जर्मन सर्जन ब्रूनो राइषार्ट ने लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का सफलतापूर्वक प्रत्यर्पण किया है। अब उन्होंने इंसानों में भी सुअर का दिल प्रत्यर्पित करने की बात कही है लेकिन उन्होंने बताया कि सूअर का दिल इंसान स्वीकार करें, इसके लिए पहले डोनर यानी सूअर के अंग को इसके अनुकूल बनाना होगा। यही कारण है कि प्रत्यर्पण से पहले सूअर के दिल में अनुवांशिक रूप से बदलाव किया जाता है। लंगूर में हृदय प्रत्यर्पित करने के पहले सूअर के दिल में अनुवांशिक रूप से बदलाव लाया गया था ताकि वह लंगूर के शरीर के अनुकूल हो। प्रत्यारोपण के बाद लंगूर ६ महीनों तक जीवित रहा यानी कहीं न कहीं हम सफल रहे। इस संदर्भ में ग्लोबल अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल शर्मा ने कहा कि उक्त अध्ययन से हृदय रोग का इलाज करनेवालों में उम्मीद की किरण जाग गई है। अनुवांशिक रूप से बदलाव करना या फिर ऐसे इम्यूनोसपरेसिव ड्रग तैयार करना होगा ताकि सूअर का हृदय इंसान का शरीर स्वीकार ले। यह इतना आसान नहीं होगा लेकिन विज्ञान और तकनीक की मदद से नामुमकिन नहीं। आनेवाले कुछ वर्ष में यह सूअर का दिल इंसानों में धड़क सकता है जिसके बाद अंगदान के लिए लोगों को प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी।

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