दिल्ली से लेकर पूरे देश को दहला देनेवाले निर्भया कांड को पूरे छह साल गुज़र गए. बातें बहुत हुई, वादे भी बहुत हुए. लेकिन सच्चाई यही है कि ज़मीन पर कुछ भी नहीं बदला. ऐसा हम सिर्फ़ इसलिए नहीं कह रहे कि निर्भया के गुनहगार अब भी अपने अंजाम यानी फांसी के फंदे से दूर हैं, बल्कि इसलिए भी कह रहे हैं कि अब भी हर रोज़ कहीं ना कहीं कोई निर्भया किसी दरिंदे के हाथों कुचली जा रही है.
16 दिसंबर 2018. पूरे छह साल. बातें हुई. विरोध हुआ. तरीके सुझाए गए. सब कुछ बदल देने के दावे किए गए. मगर अफ़सोस नतीजा अब भी वही है. हालात अब भी वही. अगर ऐसा नहीं होता तो दिल्ली का वो परिवार इस वक्त अपनी तकदीर पर रो नहीं रहा होता. आपको जानकर हैरानी होगी कि एक मासूम तो उम्र में भी निर्भया से बहुत छोटी थी. बल्कि छोटी क्या थी अभी इस दुनिया में आए हुए उसे महज़ तीन साल ही हुए थे. लेकिन छोटी उम्र में उसे एक दरिंदे ने अपना शिकार बना डाला और उसके साथ ज़्यादती की.
सही कहें तो निर्भया कांड की बरसी पर दिल्ली फिर शर्मसार हो गई. इस बार 3 साल की मासूम से बलात्कार हुआ. पड़ोसी ने ही मौका पाकर की बच्ची से ज़्यादती की. इत्तेफ़ाक से लोगों ने गुनहगार को रंगे हाथों दबोच लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.
मामला दिल्ली के बिंदापुर का है. तीन साल की छोटी बच्ची के साथ उसी के पड़ोस में रहने वाले एक शख्स ने ज़्यादती की. रेप किया. जब बच्ची लहूलुहान हो गई और बुरी तरह होने लगी, तो दूसरे पड़ोसियों को कुछ शक हुआ. जब वो उसके मकान में पहुंचे, तो आरोपी मौके पर ही पकड़ा गया. फिर तो आस-पास के लोगों ने उसे ऐसा सबक सिखाया कि क्या कहने.
असल में इस बच्ची के माता-पिता काम-काज के सिलसिले में घर से बाहर गए थे. और ये बच्ची उसकी बड़ी बहन के साथ घर में मौजूद थी. इस दौरान सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करना वाला रंजीत कुमार उनके घर पहुंचा और बच्ची को अगवा कर लिया. वो बच्ची को लेकर अपने कमरे में आ गया. फिर फूल सी नाज़ुक बच्ची के साथ बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम दिया. रंजीत इस बच्ची के मकान की ऊपरी मंज़िल में रहता है.
मामला अपने-आप में बेहद संगीन है, ऊपर से इत्तेफ़ाक ये है कि ये वाकया भी उसी रोज़ हुआ, जब देश निर्भया कांड जैसी जघन्य वारदात की छठी बरसी मना रहा था. ऐसे में मामले का तूल पकड़ना लाज़िमी था. लिहाज़ा.. दिल्ली महिला आयोग की चेयरमैन स्वाति मालीवाल ने इस मामले को उठाया और एक बार फिर प्रधानमंत्री से ऐसे मामलों को मुद्दा बनाने की बात कही.
बहरहाल, इस मामले में लोगों की मदद से गुनहगार तो दबोच लिया गया. लेकिन शायद लाख कोशिशों के बावजूद क़ानून में वो सख्ती नहीं आई, जिससे गुनहगारों में ख़ौफ़ होता. वैसे इस मामले को समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है. हक़ीक़त यही है कि अब इतने साल बाद भी निर्भया के गुनाहगारों के गले फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचे है. काश, हालात बदलें, काश लड़कियां महफ़ूज़ रहें.