मुंबई: शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने फैसले पर अडिग रहते हुए महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कहा है कि इस आरक्षण का उद्देश्य इस समुदाय को सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन से बाहर निकालना है। सरकार ने समुदाय के आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में उच्च न्यायालय में अपना हलफनामा दायर किया। हलफनामे में सरकार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा तय की गई 50 प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा सभी राज्यों पर लागू नहीं की जा सकती।
महाराष्ट्र विधानमंडल ने 30 नवंबर 2018 को एक विधेयक पारित किया, जिसमें मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव था। सरकार ने मराठाओं को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया है। हलफनामे में दावा किया गया कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के सृजन, मराठा समुदाय को इस श्रेणी में शामिल करना तथा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान ‘अत्यधिक या अनुपात से अधिक’ नहीं कहा जा सकता।
हलफनामा महाराष्ट्र सरकार के प्रशासन विभाग के महासचिव शिवाजी दौंड ने दायर किया। हलफनामे में कहा गया कि 2018 का संबंधित कानून संविधान के दायरे में पारित किया गया और इससे संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं होता। इसमें कहा गया कि राज्य सरकार ने डेटा, सर्वेक्षण, तथ्यों, आंकड़ों, रेकार्ड, विश्लेषण, जांच, शोध के आधार पर यह कानून पारित किया है। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ 23 जनवरी को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
सरकार ने कोर्ट को बताया कि यह कानून पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य के आयोग की सिफारिशों के बाद तैयार किया गया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय की है। लेकिन सरकार के हलफनामे से यह पता चलता है कि यह अधिकतम सीमा सभी राज्यों में लागू नहीं की जा सकती है। सरकार ने कोर्ट में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बचाव करते हुए कहा कि इस आरक्षण का उद्देश्य मराठाओं को खुश करना नहीं है।