मुंबई : मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर छह फरवरी से अंतिम सुनवाई शुरू होगी। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार तब तक नए कानून के तहत अपने किसी भी विभाग में कोई भी नियुक्ति नहीं करेगी। 19 दिसंबर को हुई सुनवाई में सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह 23 जनवरी तक कोई नियुक्ति इस व्यवस्था के तहत नहीं करेगी।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि वह 28 जनवरी को फैसला करेगी कि मराठा आरक्षण पर पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट की पूरी कॉपी या संक्षिप्त अंश याचिकाकर्ताओं को देना चाहिए या नहीं। सरकारी वकील वी.ए. थोराट और राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने याचिकाकर्ताओं को समूची रिपोर्ट देने को लेकर शंका प्रकट की थी।
कुंभकोनी ने कहा कि ‘हम 4000 पन्नों वाली समूची रिपोर्ट अदालत को सौंपने के लिए तैयार हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट में 20 पन्ने मराठा समुदाय के इतिहास के बारे में है, जिसे हम सार्वजनिक नहीं करना चाहते। हमें डर है कि इससे सांप्रदायिक तनाव फैलेगा और कानून व्यवस्था की दिक्कतें होंगी।’ गौरतलब है कि पीठ ने राज्य सरकार को बुधवार को समूची रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था।
याचिकाओं में कहा गया है कि सरकारी विभागों में अनेक पद खाली पड़े हैं और इन्हें तुरंत भरना चाहिए। गौरतलब है कि आरक्षण व्यवस्था को लेकर अनेक याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं। इस याचिकाओं में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई हैं जो शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों के लिए हैं। इस संबंध में महाराष्ट्र विधान परिषद में 30 नवंबर, 2018 को इस आशय का एक विधेयक पारित किया गया था।
सरकार ने पिछले ही सप्ताह इन याचिकाओं पर हो रही सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा था कि इस आरक्षण का उद्देश्य समाज में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करना है।