मुंबई : प्रस्तावित बाल ठाकरे स्मारक के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित करने के अपने फैसले को उचित ठहराते हुए महाराष्ट्र सरकार ने बृहस्पतिवार को मुंबई उच्च न्यायालय से कहा कि किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के स्मारक के लिए जमीन आवंटित करने या धन देने का उसे विवेकाधिकार है और इस पर अदालत में सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता।
सरकार ने मुख्य न्यायाधीश एन.एच.पाटील और न्यायमूर्ति एन.एम.जामदार की खंडपीठ के समक्ष यह दलील रखी। पीठ मध्य मुंबई स्थित मेयर के बंगले को शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के स्मारक में बदलने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
सामाजिक कार्यकर्ता भगवानजी रयानी और एनजीओ जन मुक्ति मोर्चा ने अप्रैल 2017 में याचिकाएं दाखिल की थीं। तभी सरकार ने स्मारक की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। गुरुवार को जब सुनवाई के लिए याचिकाएं आईं, तो याचिकाकर्ता प्रदीप हवनुर और उदय वारुंजीकर ने याचिकाओं में बदलाव की मांग की, ताकि स्मारक के लिए 100 करोड़ रुपये के आवंटन के भाजपा सरकार के फैसले को भी चुनौती दी जा सके। फैसला इस सप्ताह की शुरुआत में किया गया था।
हवनुर ने दलील दी कि इस धनराशि का इस्तेमाल राज्य में मौजूद अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए किया जा सकता है, वहीं वारुंजीकर ने दावा किया कि एक निजी व्यक्ति के लिए पूरी मशीनरी को लगाया जा रहा है। सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मिलिंद साठे ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह राज्य का विवेकाधिकार है कि किसी स्मारक के लिए कितनी जमीन या धन आवंटित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘किसी व्यक्ति का स्मारक बनाया जाना है या मूर्ति लगाई जानी है, इसका निर्णय राज्य सरकार को लेना है। राज्य सरकार के ऐसे फैसले पर अदालत में सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता’। याचिका में ट्रस्ट की स्थापना पर आपत्ति की है, क्योंकि इसमें जो 11 सदस्य हैं उनमें से 6 प्राइवेट लोग हैं। जो 6 स्थाई सदस्य हैं उनमें उद्दव ठाकरे, उनके पुत्र आदित्य ठाकरे शामिल हैं। यदि यह सरकारी ट्रस्ट है तो इसमें प्राइवेट लोगों को स्थाई सदस्य कैसे बनाया जा सकता है।
बेंच ने सरकार के अधिकार से सहमत होते हुए कोर्ट ने कहा कि वह यह तो पूछ ही सकते हैं कि यह निर्णय किस तरह लिया गया है।