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लोकल ही उठा रही लोकल ट्रेनों का कचरा

मुंबई: लोकल और गंदगी का चोली-दामन का साथ है। दिनभर ट्रैक से हजारों ट्रेनें गुजरती हैं और लाखों लोग सफर करते हैं। ये लाखों लोग ट्रैक पर कचरा फेंक देते हैं। इसके अलावा, ट्रैक के आस-पास रहने वाले भी गंदगी फैलाते हैं। लिहाजा, ट्रैक के पास छोटे-छोटे डंपिंग ग्राउंड नजर आने लगते हैं। इस कचरे को उठाने के लिए रेलवे पहले से ही विशेष ट्रेनें चला रहा है, जिन्हें मक स्पेशल कहा जाता है। पश्चिम रेलवे ने अब एक कदम आगे बढ़ते हुए पुराने कबाड़ रेक को ही मक स्पेशल ट्रेन में बदलने की पहल की है। पुरानी लोकल के नए उपयोग से रेलवे के समय में भी बचत होगी, क्योंकि दोनों ओर मोटर केबिन होने से मक स्पेशल ट्रेनों में इंजन जोड़ने की जरूरत नहीं। कबाड़ में पड़ी लोकल ट्रेन के चार डिब्बों से यह विशेष ट्रेन बनाई गई है। महालक्ष्मी वर्कशॉप के इंजिनियरों ने मांग के मुताबिक इस ट्रेन से सीटें, पंखे और लाइटें हटा दीं। चार डिब्बों के रेक में दोनों ओर मोटर कोच केबिन हैं। आम तौर पर पुरानी मक विशेष ट्रेनें मालगाड़ियों के ओपन वेगन हुआ करती थीं, जिनमें कचरे के बैग लोड करना थोड़ा मुश्किल था। इस तरह की ट्रेनों में लोकोमोटिव यानी इंजन लगाना, शंटिंग करना भी झंझट भरा होता था।

पश्चिम रेलवे के मुंबई डिविजन से 2018-19 में लगभग 82 हजार क्यूबिक मीटर यानी 40 लाख बैग कचरा उठाया गया। इसका दस फीसद कचरा भी मॉनसून में पूरी मुंबई को रोकने के लिए काफी है। लोकल ट्रेन में तब्दीलियां कर जो मक विशेष ट्रेन बनाई गई है, वह कई लिहाज से सफाईकर्मियों का काम आसान करेगी। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक ए.के. गुप्ता ने इस ट्रेन के गेट पर लगे पोल और खिड़की की जालियों को भी हटाने की बात कही है, ताकि इसका भरपूर उपयोग हो सके।  पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी रविंद्र भाकर ने बताया कि स्वच्छ भारत, स्वच्छ रेल अभियान के तहत पश्चिम रेलवे नए प्रयोग कर रहा है। इस ट्रेन का रेक 25 साल पुराना था, जिसे कबाड़ में रखने के बजाय सही काम में लगाया गया है। इस ट्रेन को अलग थीम देने की तैयारी चल रही है।

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