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 मुंबई में 1993  बम ब्लास्ट का संदिग्ध दुबई में पकड़ा गया, जल्द लाया जाएगा भारत

मुंबई : मुंबई में 1993 में हुए बम ब्लास्ट में विस्फोटक को ट्रांसपोर्ट करने के आरोपी 51 साल के भगोड़े अबु बकर को सऊदी अरब में हिरासत में लिया गया है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से मिले इनपुट की मदद से आरोपी को पकड़ा गया है जिसे जल्द ही भारत में लाया जाएगा। सेंट्रल मुंबई निवासी अबु बकर अब्दुल गफूर ने ब्लास्ट से पहले पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में कथित रूप से कई लोगों के साथ मिलकर विस्फोटकों और हथियारों की ट्रेनिंग ली थी।
एक सूत्र ने बताया, ‘उसे बम ब्लास्ट केस में कभी गिरफ्तार नहीं किया गया।’ सूत्रों के मुताबिक, अबु बकर का नाम जांच के दौरान और दूसरे आरोपियों के बयानों से हटा दिया गया था। इसी के चलते सीबीआई ने नवंबर 1997 में रेड कॉर्नर नोटिस जारी की थी। इंटरपोल नोटिस ने देश-दुनिया की सुरक्षा एजेंसियों को आरोपी के बारे में अलर्ट कर दिया था और आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए आदेश दिया गया था।
हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि उसे सऊदी पुलिस द्वारा कैसे हिरासत में लिया गया। ब्लास्ट की जांच में सामने आया था कि अबु बकर ने 12 मार्च 1993 सीरियल बम ब्लास्ट से पहले साजिश की प्लानिंग की कई मीटिंग में हिस्सा लिया था। मीटिंग कई जगहों पर हुई थी और मामले का मुख्य आरोपी दाउद इब्राहिम भी इन बैठकों में शामिल हुआ था।
ब्लास्ट से पहले मुंबई से कुछ युवकों का एक समूह ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान गया था, उन्हें हथियार चलाने और बम प्लांट करने की ट्रेनिंग दी गई। अबु बकर भी कथित रूप से इस ग्रुप का हिस्सा था। ब्लास्ट के बाद वह कभी भारत लौट कर नहीं आया। वह सऊदी अरब में ही बस गया और वहां छोटे- मोटे बिजनस चला रहा था। ऐसा मालूम चला है कि उसने एक ईरानी महिला से शादी की है।
1993 ब्लास्ट में जो हथियार और विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ था उन्हें दुबई से भेजा गया था। शुरुआत में 80 के दशक के मध्य में अबु बकर दोसा ब्रदर्स- मुस्तफा और मोहम्मद के संपर्क में आया था। ये दोनों भी 1993 ब्लास्ट के आरोपी हैं। यह भी अभी स्पष्ट नहीं है कि अबु बकर इतने सालों तक एजेंसियों को चकमा देने में कैसे कामयाब रहा।
बता दें कि 1993 सीरियल बम ब्लास्ट की जांच सीबीआई कर रही थी। मुंबई में 12 मार्च 1993 को अलग-अलग स्थानों में 12 ब्लास्ट हुए थे। इसमें 257 लोग मारे गए थे और 713 घायल हुए थे। 2007 में टाडा कोर्ट ने 12 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। उनमें से एक याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी। अन्य 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कई दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।

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