बाड़मेर. भारत-पाक सीमा से सटा एक तामलोर गांव है। वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान ग्रामीण कंधे से कंधा मिलाकर सेना के साथ खड़े रहे। रेगिस्तानी इलाका होने से दुर्गम इलाके में रास्ता दिखाने से लेकर उनके लिए खाने-पीने की खाद्य सामग्री भी अपने घरों से बनाकर पहुंचाते थे। सेना ने सिंध प्रांत के छाछरों तक कब्जा कर लिया था। ग्रामीणों के जज्बे को देख सेना खुश थी। सेना के अधिकारियों ने ग्रामीणों से बोला कि वे उनके लिए क्या कर सकते हैं? ग्रामीणों ने पानी का तालाब मांगा था। तब सेना ने बारूद से ब्लास्ट कर तालाब की खुदाई की।
वर्ष 1965 के दौर में सीमावर्ती गांवों के धोरों में दूर-दूर तक पानी का इंतजाम नहीं था। ग्रामीण ऊंटों पर पखाल भरकर पानी लाते थे। पथरीली जमीन होने से वहां तालाब की खुदाई करना मुश्किल था। तालाब बनने के बाद 54 साल से हजारों ग्रामीण और मवेशी इस तालाब से मीठा पानी पी रहे हैं।
मानसून की एक बारिश में तालाब भरने से सालभर आसपास के 10 गांव और बॉर्डर पर तैनात बीएसएफ जवान इसका पानी पीते हैं। ट्रैक्टर टंकियों के जरिए घरों व चौकियों तक पानी ले जाया जाता है। पथरीली जमीन होने के कारण एक बार तालाब लबालब होने से 10 गांवों के लिए पानी की समस्या का समाधान हो जाता है।
सीमावर्ती इलाकों में सरकारी पेयजल योजनाएं नहीं हैं, ऐसे में तालाब ग्रामीणों के गला तर करने में काम आ रहा है। तामलोर सरपंच हिंदूसिंह बताते हैं कि सेना ने खुश होकर ग्रामीणों को यह तालाब खुदाई कर तोहफे में दिया था। इसी वजह से ग्रामीण आज भी सेना के साथ दिल से खड़े हैं।