मुंबई : महाराष्ट्र में एचआईवी और एड्स से होने वाली अधिकतर मौतें ग्रामीण इलाकों से हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली वेबसाइट हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) से मिले आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2018 से फरवरी 2019 तक राज्य में एचआईवी और एड्स के कारण 1,509 लोगों की मौत हुई है। इनमें से 1,421 यानी 94 प्रतिशत मौतें ग्रामीण इलाकों से हैं। खास बात यह है कि एचआईवी से मौत के मामले में महाराष्ट्र नंबर वन हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में सुविधाओं की कमी के कारण ऐसा हो रहा है।
बता दें कि एचआईवी के मामलों को कम करने के लिए सरकार विभिन्न समुदायों के साथ मिलकर काम कर रही है। बावजूद इसके, ग्रामीण इलाकों में मौत का आंकड़ा बढ़ना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। एक तरफ जहां राज्य में अधिकतर मौतें ग्रामीण इलाकों से हैं, वहीं पिछले साल की तुलना में एचआईवी से हुई मौतों के मामले बढ़े हैं। 2017-18 में महाराष्ट्र में इस बीमारी से 1,361 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2018-19 में यह आंकड़ा बढ़कर 1509 हो गया। पिछले साल एचआईवी से होने वाली मौतों के मामले में महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर था, वहीं इस साल पहले स्थान पर आ गया है। इस बारे में जब हमने राज्य के एड्स नियंत्रण कार्यक्रम विभाग के प्रमुख तुकाराम मुंडे से बात की तो, उन्होंने इलेक्शन ड्यूटी में होने का हवाला देकर कुछ भी कहने से मना कर दिया।
आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि इस बीमारी से होने वाली 16 मौतों में से एक मौत शहर से है, बाकी ग्रामीण इलाकों से। मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (एडैक्स) की अडिशनल प्रॉजेक्ट डायरेक्टर श्रीकला अचार्य ने कहा, ‘शहरों में जांच और इलाज पर काफी फोकस है। शुरुआती स्तर पर बीमारी की जांच हो जाए, इसके लिए हम सामान्य जांच के अलावा, विशेष ड्राइव भी चलाते हैं।’
एचआईवी के लिए काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार, शहर की तुलना में अब भी गांव में सुविधाओं की कमी है। कई बार मरीजों को काफी दूर जाकर दवाइयां लानी होती हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में एचआईवी को लेकर लोगों के मन काफी भ्रम है। इलाज को लेकर लोक-लाज भी अधिक है। ऐक्टिविस्ट गणेश अचार्य ने कहा कि 2019 से पहले दवाइयों के विकेंद्रीकरण की सुविधा ग्रामीण इलाकों में कम थी। इस कारण सामान्य मरीज उपचार तक पहुंचते-पहुंचते रजिस्टेंट हो जाता है।