मुंबई : देवेंद्र फडणवीस ने 2016 में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनते ही जिस जलयुक्त शिवार योजना को पूरे दिलो-जान से शुरू किया था, वहीं जलयुक्त शिवार योजना आने वाले विधानसभा चुनाव में फडणवीस सरकार के लिए सवालों का चक्रव्यूह रच रही है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि पिछले पांच साल में इस योजना पर पानी की तरह पैसा बहाया गया है, लेकिन लोगों के पानी मिलने की बजाय जलयुक्त के पैसे से ठेकेदारों की जेबें भर गई हैं। फडणवीस सरकार की जलयुक्त शिवार योजना की विफलता को लेकर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सचिन सावंत से जलयुक्त शिवार योजना को लेकर पिछले पांच साल में मुख्यमंत्री ने बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन जमीन पर इस योजना का कोई लाभ किसानों और राज्य की आम जनता को नहीं मिला है। दिसंबर 2014 में महाराष्ट्र सरकार ने यह योजना शुरू की थी। इस पर अब तक लगभग 7 हजार 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति वैसी ही है। राज्य के जो हिस्से से पहले से सूखे का सामना कर रहे हैं, वहां आज भी पीने के पानी की, सिंचाई के पानी की और जानवरों के लिए पानी की भीषण किल्लत है। अगर यह स्थिति है तो जलयुक्त शिवार योजना पर पानी की तरह जो पैसा बहाया गया, उसका हिसाब कौन देगा? जाहिर है कि मुख्यमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना विफल साबित हुई है। इसका एक सबूत यह भी है कि राज्य में टैंकर की डिमांड कम होने की बजाय बढ़ गई है।
सवाल: टैंकर की डिमांड तो हर साल गर्मी में बढ़ती ही है।
जवाब: पिछले वर्षों में और इस साल में अंतर यह है कि जलयुक्त शिवार योजना की विफलता को छिपाने के लिए टैंकर की डिमांड को दबाया जा रहा है। मेरी जानकारी के मुताबिक राज्य के ग्रामीण इलाकों से करीब 10 हजार टैंकर की डिमांड हो रही है, लेकिन सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि 5 हजार 174 टैंकरों के जरिए ही पानी की आपूर्ति हो रही है। हमारे पास सूचना आ रही है कि जिस गांव में पानी का टैंकर पहुंचता है, वहां लोग पानी पर टूट पड़ रहे हैं। अगर जलयुक्त शिवार योजना सफल रही होती तो गांवों में पानी की इतनी किल्लत नहीं होती।
सवाल: सरकार का दावा है कि जलयुक्त शिवार योजना से 16 हजार गांवों को सूखामुक्त किया गया है।
जवाब: यही तो विडंबना है। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जलयुक्त शिवार योजना की झूठी तारीफ करते नहीं थकते। सरकार का दावा 16 हजार गांवों को सूखा मुक्त करने का है, लेकिन यह दावा सिर्फ जुबानी है। आप खुद ही समझ सकते हैं कि इस विज्ञापनबाज सरकार ने जलयुक्त शिवार योजना से जो 16 हजार गांव सूखा मुक्त हुए हैं, अब तक उनकी सूची जारी नहीं की है। राज्य में इन दिनों पानी की जो किल्लत है, वह सरकार के इस दावे की पोल खोल रही है। सरकार ने तो यह भी दावा किया था कि सूखे की भयंकर चपेट में आए लातूर में जलयुक्त शिवार योजना के तहत सैकड़ों करोड़ रुपये का काम किया गया है और इस साल लातूर में पानी का संकट नहीं होगा लेकिन लातूर इस साल भी पानी के संकट से जूझ रहा है।
सवाल: आपका आरोप है कि जलयुक्त शिवार योजना का पैसे से ठेकेदार मालामाल हो गए हैं।
जवाब: यह एक कटु सत्य है। पूरी जलयुक्त शिवार योजना सरकार के पसंदीदा ठेकेदारों के हाथ में चली गई। अदालत ने भी इस बारे में सरकार को फटकार लगाई है। यह देखने में आया है कि जन सहभाग से जलयुक्त शिवार योजना के तहत एक क्युबिक मीटर पानी जमा करने के लिए खुदाई का जो काम केवल 32 रुपये में हुआ, वही काम सरकार द्वारा नियुक्त ठेकेदारों ने 86 रुपये में किया।
सवाल: सरकार का दावा है कि भू-जलस्तर नीचे जाने की वजह किसानों द्वारा पानी का दोहन है।
जवाब: यह सरकार झूठ बोलने और लोगों को भ्रमित करने में एक्सपर्ट है। अगर किसानों ने जमीन के नीचे से पानी का दोहन किया होता तो कम से कम फसल तो अच्छी होती। न फसल अच्छी हुई, न भू-जलस्तर बढ़ा, न पानी जमा हुआ, तो फिर जलयुक्त शिवार के नाम पर जो पैसा खर्च हुआ, उसका क्या लाभ हुआ।
सवाल: सरकार का दावा है कि जलयुक्त शिवार योजना के कारण राज्य में भू-जलस्तर बढ़ा है।
जवाब: सरकार का यह दावा भी झूठा है। सरकार के इस दावे का भंडाफोड़ मैं पहले ही कर चुका हूं। 2018 की जीएसडीए की रिपोर्ट के अनुसार 252 तहसीलों के 13,984 गांवों में बीते पांच साल में 1 मीटर से अधिक भू-जलस्तर नीचे गया है। जीएसडीए की वर्ष 2014-15 की रिपोर्ट बताती है कि 2014-15 में 70.2 फीसद बारिश हुई थी और 194 तहसीलों के केवल 5976 गावों में भू-जलस्तर औसतन एक मीटर से ज्यादा नीचे गया था। वर्ष 2015 में सबसे कम अर्थात 59,4 प्रतिशत बारिश हुई थी, तब भी 262 तहसीलों के 13571 गांवों का भू-जलस्तर एक मीटर से ज्यादा नीचे गया था। इस वर्ष औसतन 74.3 फीसदी बारिश होने के बाद भी 13984 गांवों में भू-जलस्तर एक मीटर से अधिक नीचे गया है। इसका मतलब है जलयुक्त शिवार योजना का उपयोग शून्य साबित हुआ है।