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भाईगीरी से आजादी, पर नई टेक्नॉलजी की दहशत

मुंबई : आजादी के बाद के सात दशकों में देश में बहुत कुछ बदला है, अपराधियों का अपराध करने का तरीका भी। चूंकि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, इसलिए विदेश में बैठे अंडरवर्ल्ड सरगनाओं और आतंकवादियों ने इस महानगर को हमेशा टारगेट किया। पिछले कई सालों में मुंबई में हुए बम धमाके व 26/11 का फिदायीन हमला सबसे बड़े उदाहरण हैं। 26/11 के बाद मुंबई में सुरक्षा तैयारियों का पूरा कायाकल्प कर दिया गया। अत्याधुनिक हथियार मंगाए गए। फोर्स-वन का गठन हुआ। एनएसजी का मुंबई में भी एक सेंटर खोला गया, बावजूद इसके इस 15 अगस्त को भी यह महानगर हाई अलर्ट पर है। महाराष्ट्र एटीएस के सबसे लंबे समय तक चीफ रहे और C-60 जैसी फोर्स के जनक के.पी रघुवंशी कहते हैं कि ‘आने वाले कल का क्राइम बहुत खतरनाक होने वाला है। मुंबई जैसे शहर में भविष्य का क्राइम टैक्नॉलजी क्रेंद्रित होगा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केंद्रित भी हो सकता है। अब तो आर्टिफिशियल रोबोट तैयार किए जा रहे हैं। इनमें प्रोग्रामिंग फिट करके इन्हें कहीं भी भेजा जा सकता है। जिस तरह इन दिनों बमों में टाइमिंग लगा देते हैं, उसी तरह रोबोट को प्रोग्रामिंग करके छोड़ दिया जाएगा। आप कितने भी स्निफर डॉग्स को जगह-जगह घुमाइए, कुछ होने वाला नहीं है। इसीलिए जब क्रिमिनल टेक्नॉलजी के हिसाब से जा रहे हैं, तो हमें खुद को बहुत अडवांस बनाना पड़ेगा। जो चुनौतियां हैं हमारे सामने, उसके हिसाब से हमको खुद को बदलना पड़ेगा, उसके आगे की सोचना पड़ेगा। इसीलिए हमारे लिए बहुत जरूरी है कि हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कैमरा टैक्नॉलजी का न सिर्फ इस्तेमाल करें, बल्कि उनकी बाकायदा मॉनिटरिंग भी करें।’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संबंध में रघुवंशी अलेक्सा तकनीक का उदाहरण देते हैं। कहते हैं कि अलेक्सा से पूछो कि मुंबई का टाइम क्या है, वह बता देगा। किसी फलां-फलां चैनल पर लेटेस्ट न्यूज क्या है, वह बता देगा।
रघुवंशी कहते हैं कि सात दशक पहले या कुछ साल पहले तक भी अपराधियों और पुलिस दोनों का काम करने का तरीका आज से एकदम अलग था। पहले एक हवलदार भी एक गांव या मोहल्ले में भारी पड़ जाता था, क्योंकि लोग कानून से डरते थे, पुलिस को रिस्पेक्ट देते थे। पहले क्राइम और सिक्यॉरिटी की तरफ पुलिस का फोकस ज्यादा रहता था। अब वीआईपी सिक्यॉरिटी की तरफ भी उतना या उससे ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। ज्यादातर वीआईपी लोगों का फोकस रहता है कि किसी तरह पुलिस को मैनेज करते रहो। पहले जो खबरें होती थीं, इंटेलिजेंस इनपुट्स होते थे, गांव में जो मुखबिर रहते थे, पुलिस पाटील गांव-गांव में होते थे, वे चुपचाप पुलिस को बताते थे। पुलिस उनकी सिक्रेसी मेनटेन करके रखती थी। इनके जरिए क्राइम और क्रिमिनल्स का पता चलता रहता था। तब डोजियार महत्वपूर्ण थे। अब डोजियार-वोजियार इतने महत्वपूर्ण रह नहीं गए हैं। अब टेक्नॉलजी बहुत तेज हो गई है।
पहले लाठी चाकू से वारदात होती थीं, फिर पिस्टल, रिवॉल्वर आए, फिर एके-47, बम का जमाना आया। फिर साइबर क्राइम ने लोगों की नींद उड़ा दी। मतलब हर कुछ साल में अपराधियों की प्राथमिकताएं बदलीं। चूंकि मुंबई आर्थिक राजधानी है, इसलिए अपराधियों की काट के लिए पुलिस ने भी खुद को वक्त के हिसाब से बहुत बदला है। अब तो पूरा शहर ही सीसीटीवी कैमरों से कवर है। हालांकि अंडरवर्ल्ड की भाईगीरी काफी कंट्रोल में है, फिर भी टेक्नॉलजी के हिसाब से आगे बहुत दूर तक सोचने की जरूरत है।

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