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पहली डी-ऑर्बिटिंग प्रक्रिया हुई पूरी

चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के सफलतापूर्वक ऑर्बिटर से अलग होने के एक दिन बाद मंगलवार को चंद्रयान-2 की पहली डी-ऑर्बिटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हुई। पहली डी-ऑर्बिटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद चंद्रयान-2 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की यात्रा में एक और बाधा पार कर ली है और इसी के साथ यह अपने लक्ष्य के और करीब पहुंच गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि योजनानुसार मंगलवार सुबह आठ बजकर 50 मिनट पर चंद्रयान-2 की पहली डी-ऑर्बिटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हो गई।
इस प्रक्रिया में चार सेंकड का समय लगा और वर्तमान में चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और लैंडर दोनों सही तरह से और सही दिशा में कार्य कर रहे हैं। चंद्रयान-2 की डी-ऑर्बिटिंग की अगली प्रक्रिया कल सुबह साढ़े तीन और साढ़े चार बजे के बीच पूरी होगी।
इसरो वैज्ञानिक विक्रम लैंडर को चार सितंबर को अपराह्न तीन से चार बजे के बीच चांद के सबसे नजदीकी कक्षा में पहुंचाएंगे। इस कक्षा की एपोजी 36 किमी और पेरीजी 110 किमी होगी। दूसरी बार चांद की कक्षा बदलने यानी चांद के सबसे नजदीकी कक्षा में पहुंचने के बाद छह सितंबर तक विक्रम लैंडर के सभी सेंसर्स और पेलोड्स के सेहत की जांच होगी। प्रज्ञान रोवर के सेहत की भी जांच की जाएगी।
छह एवं सात सितंबर को मध्य रात्रि के बाद 1:30 से 1.40 बजे के बीच विक्रम लैंडर 35 किमी की ऊंचाई से चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना शुरू करेगा। तब इसकी गति 200 मीटर प्रति सेकंड होगी। यह इसरो वैज्ञानिकों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण काम होगा। देर रात 1:55 बजे विक्रम लैंडर दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद दो क्रेटर मैंजिनस-सी और सिंपेलियस-एन के बीच मौजूद मैदान में उतरेगा। करीब 6 किमी की ऊंचाई से लैंडर 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की सतह पर उतरेगा और इसबीच 15 मिनट बेहद तनावपूर्ण होंगे।
लैंडिंग के करीब दो घंटे के बाद विक्रम लैंडर का रैंप खुलेगा और इसी के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर उतरेगा। सात सितंबर को सुबह 5.10 बजे प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर चलना शुरू करेगा। वह एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की सतह पर 14 दिनों तक यात्रा करेगा। इस दौरान वह 500 मीटर की दूरी तय करेगा।
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा। इसमें आठ पेलोड हैं और इसके साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा।
लैंडर का नाम जानें किसके नाम पर रखा गया है
लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसमें चार पेलोड हैं। यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा, इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था। बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया।
इससे पहले रविवार को अंतरिक्ष यान ने चन्द्रमा की पांचवी और अंतिम कक्षा में प्रवेश कर लिया था जिसके बाद आज लैंडर ‘विक्रम’ ऑर्बिटर से अलग हो गया। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को लेकर जा रहा चंद्रचान-2 सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’करेगा तथा और उस दौरान प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 5० मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा।
इस मिशन में चंद्रयान-2 के साथ कुल 13 स्वदेशी मुखास्त्र यानी वैज्ञानिक उपकरण भेजे जा रहे हैं। इनमें तरह-तरह के कैमरा, स्पेक्ट्रोमीटर, राडार, प्रोब और सिस्मोमीटर शामिल हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का एक पैसिव पेलोड भी इस मिशन का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की सटीक दूरी का पता लगाना है।
इसरो ने कहा कि इस अभियान के जरिये हमें चंद्रमा के बारे में और अधिक जानकारी मिल सकेगी। वहां मौजूद खनिजों के बारे में भी इस मिशन से पता लगने की उम्मीद है। चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता और उसकी रासायनिक संरचना के बारे में भी पता चल सकेगा।
इस अभियान पर लगभग 1000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। यह अन्य देशों द्वारा संचालित ऐसे अभियान की तुलना में काफी कम है। यदि यह अभियान सफल रहता है तो भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद चांद की सतह पर रोवर उतराने वाला चौथा देश बना जायेगा। इस वर्ष की शुरुआत में इजरायल का चंद्रमा पर उतरने का प्रयास विफल रहा था।

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