पूजा तिवारी पांडेय
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है और मुंबई के दिंडोशी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल पूरी तरह से गर्माया हुआ है। सभी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं, मगर दिंडोशी में इस बार शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच कड़ी टक्कर के बीच एक तीसरी ताकत ने भी अपनी जगह बना ली है। खुद शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के वरिष्ठ युवा नेता रूपेश श्याम कदम ने पार्टी से बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, और उन्होंने अपने ही पूर्व साथियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
दिंडोशी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरते हुए रूपेश कदम ने जनता से भावुक अपील की है, “माय बाप जनता, एकदा सेवेची संधी द्या, संधीच सोन करून दाखवतो!” यानी “मेरी माँ-बाप जनता, मुझे सेवा का एक मौका दीजिए, मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा।” उनके इस नारे ने जनता के बीच चर्चा का माहौल बना दिया है। अब सवाल उठता है कि आखिर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के इस नेता की नाराजगी की वजह क्या है?
रूपेश कदम ने आरोप लगाया है कि शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने दिंडोशी के लिए एक बार फिर बाहरी नेताओं को टिकट देकर स्थानीय नेताओं की उपेक्षा की है। उन्होंने इस बात पर सवाल उठाया कि आखिर दिंडोशी जैसे क्षेत्र में पिछले 10 सालों से आमदार रहने वाले सुनील प्रभु क्षेत्र की असल समस्याओं का समाधान क्यों नहीं कर पाए? कदम के समर्थकों का कहना है कि उन्होंने अपने निजी पैसों से क्षेत्र में कई विकास कार्य कराए हैं जैसे “गली-मोहल्लों में सड़कें बनवाना, गटर की सफाई कराना, सामुदायिक सभाओं का आयोजन, खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करना, बैठकों के लिए पेवर ब्लॉक बिठाना, शौचालय बनवाना, सोसाइटीज में कुर्सियां और बेंच वितरित करना, और कचरे के डब्बे वितरण करना ।
कदम की नाराजगी केवल टिकट मिलने तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने शिंदे गुट के उम्मीदवार संजय निरुपम और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के उम्मीदवार सुनील प्रभु दोनों पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘बाहरी’ कहा है और तर्क दिया है कि “इन नेताओं को दिंडोशी की समस्याओं की असल समझ नहीं है।” कदम का मानना है कि शिवसेना (उद्धव) के नेता के तौर पर उन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों में आदित्य ठाकरे जी के आदेश पर सुनील प्रभु के लिए प्रचार किया था, मगर अब वे प्रभु की कार्यशैली से पूरी तरह असंतुष्ट हैं।
याद दिला दें कि बोरिवली विधानसभा में भी इसी तरह का घटनाक्रम देखने को मिला, जहाँ भाजपा के वरिष्ठ नेता एव पूर्व सांसद गोपाल शेट्टी को पार्टी टिकट न मिलने पर जनता के आग्रह पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इसी तरह रूपेश कदम का भी कहना है कि अगर वे केवल वोट काटने के लिए मैदान में होते, तो पहले ही शिंदे गुट में शामिल हो जाते। “अगर मेरा मकसद केवल सत्ता पाना होता तो मुझे भी शिंदे गुट में जाकर टिकट मिल सकता था,” कदम ने स्पष्ट किया की उनके कुछ विरोधी उन्हें बागी का टैग दे रहे है तो इसके जवाब में मैं कहना चाहता हूँ की मैंने मेरे नेता-श्रद्धेय बालासाहेब ठाकरे, उद्धवसाहेब ठाकरे, आदित्य ठाकरे भी मुझे कभी ग़लत नहीं कहेंगे क्योंकि मैंने जनता की समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से चुनाव में उतरा हूँ ना की सत्ता की लालच में ।
अब सवाल यही है कि क्या वाकई रूपेश कदम अपने दम पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शिवसेना (शिंदे) दोनों गुटों को मात देने में कामयाब होंगे? दिंडोशी के स्थानीय लोग कदम को अपने क्षेत्र का बेटा मानते हैं और उनकी रैलियों में युवाओं की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। उनकी रैलियों में हजारों की संख्या में स्थानीय लोग शामिल हो रहे हैं और उन्हें अपना बेटा कहकर सम्बोधित कर रहे हैं।
जैसा की रुपेश कदम ने दोनों प्रत्याशी को बाहरी कहा तो क्या दिंडोशी की जनता बाहरी नेताओं को नजरअंदाज करके इस बार अपने ‘घर के बेटे’ को एक मौका देने का मन बना रही है? या फिर यह सीट किसी शिवसेना के गुट की झोली में जाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में दिंडोशी की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।