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ऐंटी करप्शन ब्यूरो ने 2 साल पहले मांगी थी जांच की इजाजत, सरकार ने अभी तक नहीं दिया जवाब

मुंबई : महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्रालय ने ऐंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के एक खत को पिछले दो साल से लटका कर रखा है। एसीबी ने महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास प्राधिकरण के मैनेजिंग डायरेक्टर राधेश्याम मोपलवार और लोकनिर्माण विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव आशीष कुमार सिंह के खिलाफ जांच की इजाजत मांगी थी। गृह मंत्रालय ने अब तक न ही इजाजत दी है और न ही मांग को खारिज किया है। एसीबी ने फरवरी 2017 में गृह मंत्रालय को खत लिखकर दोनों अधिकारियों के अलावा उन आरोपों की जांच की मांग भी की थी जिनके मुताबिक नासिक जिले में मुंबई-नागपुर सपरकम्यूनिकेशन हाइवे के लिए कुछ खास अधिकारियों को फायदा मिलने की बात कही गई थी। इन अधिकारियों ने प्रॉजेक्ट की जमीन के पास ही जमीन खरीदी थी। यह जानकारी वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण वटगांवकर को सूचना का अधिकार के तहत पता चली थी।
सितंबर 2016 में कृषि संगठन शेटकरी संघर्ष समिति की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की बैठक में यह मांग की गई थी कि प्रॉजेक्ट का खांचा इस तरह से तैयार किया जाए कि कम से कम किसान प्रभावित हों। यह आरोप भी लगाया गया था कि मौजूदा प्रॉजेक्ट को इस तरह डिजाइन किया गया है जिससे कुछ सरकारी अधिकारियों का फायदा हो। फडणवीस ने तब मोपलवार और सिंह से प्रॉजेक्ट की रेखा को दूसरी तरह से तय करने के विकल्पों को देखने के लिए कहा था।
यह मुद्दा विधानसभा के शीतसत्र में उठाया गया था। एनसीपी राज्य अध्यक्ष जयंत पाटिल और शिवसेना विधायक प्रताप सरनाइक के सवालों के जवाब में सीएम ने ऐलान किया था कि जांच कर यह पता लगाया जाएगा कि किन सरकारी अधिकारियों ने मुंबई-नागपुर सुपरकम्यूनिकेशन प्रॉजेक्ट के पास बेनामी संपत्ति खरीदी है।
शेटकरी संघर्ष समिति ने एसीबी को खत लिखकर जांच की मांग की थी। एसीबी ने इस पर राज्य सरकार से इजाजत मांगी थी लेकिन सरकार ने अब तक इस खत का जवाब नहीं दिया है। वहीं, हमारे सहयोगी अखबार मुंबई मिरर से बातचीत में मोपलवार ने दावा किया है, ‘एसीबी ने अपने खत में सरकार से निर्देशों की मांग की थी, जांच की इजाजत नहीं मांगी थी।’
मोपलवार ने यह भी कहा है कि कोई अधिकारी हाइवे प्रॉजेक्ट की रेखा तैयार नहीं कर सकता है। उन्होंने बताया, ‘जब हम वन और पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्ताव भेजते हैं तो हमें उन्हें तीन विकल्प बताने होते हैं जिनसे पर्यावरण को सबसे कम नुकसान हो। प्रॉजेक्ट तय करते वक्त जमीन अधिग्रहण की कीमत, पुलों या सुरंगों, रेलवे लाइन, जैसी चीजों का ध्यान रखना होता है। इस आधार पर प्रॉजेक्ट तैयार होता है।’ उधर, वटगांवकर का दावा है कि राज्य सरकार की हीलाहवाली से किसानों की विश्वास डगमगा रहा है।

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