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बिना गुरु कैसे दी जाए संस्कृत महाविद्यालयों में शिक्षा

इलाहाबाद, पूरे उत्तर प्रदेश में संस्कृत पाठशालाओं की स्थिति खराब है। 95 फीसद विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं। महामना मदन मोहन मालवीय ने यहां शिक्षा प्राप्त की थी। यह उनकी धरोहर के रूप में है। इसकी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यहां से पढ़े विद्वानों ने देश-दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है और आज यही महाविद्यालय शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। इसके सामने अपना अस्तित्व बचाने का संकट है। उक्त बातें सच्चा आश्रम संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य चंद्रदेव मिश्र ने कहीं।

वह श्री धर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के 208वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज 95 फीसद संस्कृत महाविद्यालयों में संस्कृत के शिक्षकों के पद खाली हैं। ऐसे में योग्य विद्यार्थी कहां से आएंगे। व्याकरण, वेद-वेदांग का पठन-पाठन स्थिर हो गया है। उन्होंने संस्कृत के विद्यार्थियों को धर्म और ज्ञान दोनों की शिक्षा देने का आह्वान किया ताकि वह अपनी जीविका चला सकें। ज्योतिष पीठ के संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य संतोष शुक्ल ने कहा कि पूरे विश्व में इस संस्कृत महाविद्यालय का नाम रहा है पर आज यह सरकारों द्वारा उपेक्षा का दंश झेल रहा है। ऐसे महाविद्यालय की तरफ शासन का ध्यान जाना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित राम नरेश त्रिपाठी ने की। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि महामना की पाठशाला का गौरव कायम रहे। संस्कृत से ही संस्कृति है और संस्कृति के लिए भारत वर्ष जाना जाता है। ऐसे में संस्कृत की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। कार्यक्रम के पूर्व विद्यालय के संस्थापक गुरुदेव हरदेव ब्रह्माचारी को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।

इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रबंधक अमिताभ टंडन, आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी, डॉ. सियाराम त्रिपाठी, आचार्य संतोष शुक्ल, डॉ. चिरंजीवी शर्मा आदि मंचासीन रहे। इस अवसर पर सुशील कुमार पांडेय, रवि शर्मा, देवेंद्र तिवारी, वाल्मीकि राम त्रिपाठी, डॉ. शंभुनाथ त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।

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