नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी ऐक्ट के बेजा इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया है। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने अग्रिम जमानत का प्रावधान जोड़ने का आदेश दिया। इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के मुताबिक इसके तहत दर्ज केसों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। बेंच ने कहा कि बेगुनाह लोगों के सम्मान और उनके हितों की रक्षा के लिए ऐसा प्रावधान किया जाना जरूरी है। जजों ने कहा कि किसी भी ऐक्ट को ब्लैकमेल का जरिया या निजी रंजिश निकालने का उपकरण नहीं बनने दिया जा सकता।
‘चुपचाप अधिकारों का उल्लंघन होता नहीं देख सकते’
बेंच ने एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि एससी/एसटी ऐक्ट का मतलब जातिवाद को बनाए रखना नहीं, जिसका समाज और संवैधानिक मूल्यों पर विपरीत असर पड़ सकता है। बेंच ने कहा, ‘इस ऐक्ट के दुरुपयोग के मामलों को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि निश्चित अथॉरिटी से मंजूरी मिलने के बाद ही किसी सरकारी कर्मचारी को गिरफ्तार किया जाए। इसके अलावा गैर-सरकारी कर्मी को अरेस्ट करने के लिए भी एसएसपी की ओर से अप्रूवल मिलना जरूरी होना चाहिए।’
‘डीएसपी स्तर का अधिकारी करे आरोपों की जांच’
अदालत ने कहा कि इस ऐक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी है कि इसके तहत दर्ज कराए गए मामलों में डीएसपी की ओर से शुरुआती जांच की जाए। इससे पता चल सकेगा कि आरोप सही हैं या फिर किसी तरह का बदला लेने या किसी के उकसावे में ऐसा किया गया है। बेंच ने कड़े लहजे में कहा कि यदि किसी कानून का बेगुनाह लोगों को क्रिमिनल केसों में फंसाने के लिए दुरुपयोग होता है तो अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकती।