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कैश की किल्लत: 100 रुपये के मटमैले नोटों की वजह से बढ़ सकती है समस्या

पुणे
कई राज्यों में कैश की किल्लत के बीच अब 100 रुपये के पुराने, मटमैले नोटों की वजह से संकट और गहरा सकता है। बैंकर्स का कहना है कि 200 और 2000 रुपये के नोटों की तरह 100 रुपये मूल्य के नोटों, खासकर जो एटीएम कैसेट में फिट हो सकें, की सप्लाई भी कम है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि 100 रुपये के उपलब्ध अधिकतर नोट मटमैले और एटीएम में डालने लायक नहीं हैं। उनमें से कुछ तो 2005 से भी पुराने हैं।’बैंकर्स ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) से इस समस्या पर तुरंत ध्यान देने का आग्रह किया है। एक पब्लिक सेक्टर बैंक के करंसी मैनेजर ने कहा, ‘RBI 100 रुपये के नए नोट तेजी से लाए नहीं तो 500 रुपये के नोटों पर आने वाले दिनों में अत्यधिक दबाव होगा।’
नोटबंदी के तुरंत बाद RBI ने 100 रुपये के नोटों की सप्लाई को बड़ी मात्रा में बढ़ाया था। 2016-17 में (नोटबंदी से पहले) 100 रुपये के 550 करोड़ पीस नोट चलन में थे और RBI ने इसे बढ़ाकर 573.8 करोड़ कर दिया।
हालांकि, बैंकर्स कहते हैं कि यह पर्याप्त नहीं था, क्योंकि 100 रुपये के नोटों का इस्तेमाल 2000 रुपये के नोटों के चेंज के रूप में हुआ (जब 500 रुपये के नोट आसानी से उपलब्ध नहीं थे)।
RBI ने कहा कि 2015-16 में मांग के मुकाबले 44 करोड़ पीस कम सप्लाई की गई थी। 2017-18 के लिए डेटा अगस्त में उपलब्ध होगा।
करंसी मैनेजर्स ने कहा कि नोटबंदी के बाद कैश किल्लत को दूर करने के लिए बड़ी मात्रा में मटमैले नोट्स का इस्तेमाल किया गया था। ये नोट अभी भी सिस्टम में मौजूद हैं। एक पब्लिक सेक्टर बैंक के टॉप मैनेजर ने कहा, ‘इन नोटों की हालत इतनी खराब है कि इन्हें संभालना मुश्किल हो रहा है।’
RBI डेटा भी यही बताता है। पिछले दो सालों की तुलना में नोटों का डिस्पोजल, खासकर 100 रुपये मूल्य के, वित्त वर्ष 2016-17 में लगभग आधा हो गया।
वित्त वर्ष 2016-17 में आरबीआई ने 100 रुपये के 258.6 करोड़ पीस नोटों को डिस्पोज किया, जबकि पिछले 2 वित्त वर्ष में यह 510 करोड़ पीस से अधिक था। परिणामस्वरूप चलन में मौजूद कुल करंसी में 100 रुपये के नोटों का हिस्सा 10 फीसदी से बढ़कर 19.3 फीसदी हो गया। इसमें बड़ा हिस्सा मटमैले नोटों का था।
बैंक मैनेजर्स कहते हैं कि इस वजह से उनके ब्रॉन्चों में भी कम मूल्य के नोटों की भरमार है। RBI डेटा के मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 में 50 रुपये से इससे कम के 489.8 करोड़ नोटों को डिस्पोज किया गया, जबकि 2015-16 में 777.4 करोड़ और एक साल पहले 645.4 करोड़ नोट डिस्पोज किए गए। चलन में इन नोटों का हिस्सा भी मार्च 2017 में बढ़कर 7.3 फीसदी हो गया, जोकि एक साल पहले 4 फीसदी था।

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