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महाराष्ट्र में बाल-मृत्यु दर के चौंकाने वाले आंकड़े, 11 महीने में 13,541 शिशुओं की मौत

मुंबई
महाराष्ट्र में बाल-मृत्यु दर के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। राज्य में 11 महीनों के भीतर 1300 से ज्यादा शिशुओं की मौत हुई है। ये सभी बच्चे एक साल से कम उम्र के थे। इनमें भी एक-तिहाई बच्चों की मृत्यु जन्म के पहले महीने में हो गई थी।
शिशु मृत्यु दर को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, बावजूद इसके राज्य में 11 महीनों में 13,000 से अधिक शिशुओं की मौत हुई है। मौत का कारण जानने के लिए 11,532 मामलों की जांच से 22 प्रतिशत मौत का कारण प्री-मैच्योर डिलिवरी और कम वजन होने की बात सामने आई। यह खुलासा हुआ है सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत राज्य परिवार कल्याण विभाग द्वारा दी गई जानकारी में हुआ है।

65 प्रतिशत की मौत जन्म के एक महीने में
आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी को मिली जानकारी के अनुसार, अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 के बीच 13541 शिशुओं की मौत हुई है। मौत के मुंह में समाने वाले 65 प्रतिशत शिशुओं की मौत जन्म के एक महीने के अंदर ही हो गई। मरने वालों में 54 प्रतिशत लड़के, जबकि 46 प्रतिशत लड़कियां हैं। आरटीआई के जरिए जानकारी निकालने वाले आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने कहा कि राज्य में शिशु और बाल मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो रही है। इसका मुख्य कारण इसके लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रम का लोगों तक न पहुंच पाना है। अभी भी आदिवासी इलाकों में कुपोषण की समस्या और गर्भवती महिलाओं को मिलने वाला पोषित भोजन बड़ी चुनौती है।

गर्भावस्था के दौरान दिक्कत
आंकड़ों के अनुसार, 22 प्रतिशत शिशु की मौत का कारण समय से पहले डिलिवरी और जन्म के दौरान कम वजन रहा। वहीं 7 प्रतिशत बच्चों की मौत का कारण निमोनिया, 12 प्रतिशत का बर्थ ट्रॉमा, 10 प्रतिशत में जन्म से दिल में छेद इत्यादि रहा। जन आरोग्य अभियान के सह समन्वयक डॉ. अभिजीत मोरे ने कहा कि राज्य में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को मिलने वाली देख-रेख और नियमित जांच जैसी सुविधाओं की कमी है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 के अनुसार, राज्य की केवल 32 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को ही ऐंटीनैटल केयर यानी गर्भवस्था के दौरान मिलने वाली सुविधाओं का लाभ मिला था, जो कि बेहद कम है।

इसके अलावा 2014 से पहले विलेज चाइल्ड डिवेलपमेंट सेंटर नाम से एक प्रोग्राम चलाया जाता था। इसके अंतर्गत जन्म के बाद कम वजन वाले बच्चों को पोषित आहार के लिए पैसे मिलते थे, जिसे मौजूदा सरकार ने 2014 में बंद कर दिया। पहले की तुलना में शिशु मृत्युदर में सुधार हुआ है, हालांकि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शिशु मृत्यु के पीछे कई कारण हैं। इसे रोकने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

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