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अमरीका और उत्तर कोरिया: कभी हां, कभी ना

अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच सिंगापुर में 12 जून को होने वाली बातचीत कभी हां और कभी ना के बीच झूल रही है.

राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से बातचीत की हामी भरने के बाद उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन ने कहा है कि अमरीका जिस तरह की चालें चल रहा है, उस माहौल में बातचीत नहीं हो सकती.

बुधवार को उत्तर कोरिया ने चेतावनी दी कि वो हो सकता है कि वो इस बातचीत का हिस्सा ना बने.

ट्रंप की मुश्किल उनके ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने बढ़ा दी है. जॉन बोल्टन का कहना है कि अमरीका उत्तर कोरिया में भी “लीबिया मॉडल” अपनाने की सोच रहा है. साल 2003 में लीबिया के नेता कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी परमाणु कार्यक्रम छोड़ने के लिए तैयार हो गए थे और बदले में अमरीका ने लीबिया पर लगी अधिकतर पाबंदियां हटा दी थी. लेकिन साल 2011 में पश्चिमी देशों के समर्थन से विद्रोहियों ने उनका तख्तापलट कर दिया जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई.

ट्रंप ने कहा है कि उत्तर कोरिया के साथ वो “लीबिया मॉडल” अपनाने के बारे में विचार नहीं कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि दोनों देशों के बीच बीतचीत ज़रूर होगी.

ट्रंप ने अपने सुरक्षा सलाहकार के बयान को खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा, “उत्तर कोरिया के मामले में हम लीबिया मॉडल के बारे में कतई नहीं सोच रहे हैं. लीबिया में हमने उस देश को तबाह किया था. वो देश बर्बाद हुआ था. गद्दाफ़ी को बनाए रखने की डील नहीं हुई थी. जिस लीबियाई मॉडल की बात की जा रही है, वो बिल्कुल अलग थी.”

ट्रंप ने कहा, “वो जिस तरह की डील के बारे में सोच रहे हैं उसके तहत किम जोंग-उन होंगे, वो अपने देश में होंगे और अपने देश में शासन कर रहे होंगे और धनी होगें. “ट्रंप को ये भी आशंका है कि उत्तर कोरिया को बातचीत की पटरी से उतारने के लिए चीन साजिश कर रहा है. इसकी वजह ये हो सकती है कि किम जोंग उन हाल ही में दो बार चीन की यात्रा पर गए और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की.

ट्रंप ने कहा, “मुझे कई वजहों से ऐसा लगता है कि चीन कोई सौदा करना चाहता है. शायद इसकी वजह व्यापार हो. उन्हें इससे पहले कभी इतनी परेशानी नहीं हुई. ये बहुत संभव है कि वो किम जोंग-उन को भड़का रहे हों.”

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