नई दिल्ली: पिछले 13 दिनों से लगातार बढ़ते तेल के दामों पर विपक्ष सरकार और बीजेपी पर हमलावार और लोगों की परेशानी के हवाला देकर कांग्रेस ने सरकार से पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए कहा है. सरकार ने अपनी ओर से साफ कर दिया है कि वह पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए तैयार है लेकिन इसके लिए जीएसटी काउंसिल में सभी राज्यों के वित्तमंत्रियों द्वारा प्रस्ताव का अनुमोदन आवश्यक है. बता दें कि कई राज्य सरकार को पेट्रोलियम उत्पाद पर लग रहे कर और उससे हो रही आमदनी से खर्चे का बड़ा हिस्सा मिलता है. ऐसे में कई राज्य अभी इसे जीएसटी में लाने के लिए तैयार नहीं है. इसका कारण साफ है कि अभी तेल पर करीब 100 फीसदी कर लगता है. इसमें राज्य और केंद्र का हिस्सा होता है. यानी 80 रुपये प्रतिलीटर यदि तेल के दाम हैं तब आधा पैसा कर की वजह से बढ़ा हुआ है.
अब जब बात जीएसटी की हो रही है तब जीएसटी के नियम के मुताबिक अधिकतम 28 फीसदी ही कर पेट्रोलियम उत्पाद पर लगाया जा सकता है. इस कर में भी केंद्र और राज्यों में बंटवारा होना है. इससे यह साफ है कि सरकारों को इस मद से हो रही आमदनी का करीब आधा हिस्सा जीएसटी के लागू होते ही गंवाना होगा. यही वजह है कि सरकारें इसके लिए तैयार नहीं है. ऐसे में जब केंद्र और राज्य सरकारें असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है तब देश में इस मुद्दे पर राजनीति हो रही है. विपक्ष जहां इसे सरकार की नाकामी साबित करने पर तुला है, वहीं बीजेपी और सरकार की ओर से इसे या तो अंतरराष्ट्रीय दबाव बताया जा रहा है या फिर कांग्रेस के हमले का जवाब उसी के लहजे में दिया जा रहा है. एएनआई के अनुसार अब एक बीजेपी नेता जे मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस सरकार को तेल के दामों के लिए घेर रही है, उसकी आलोचना कर रही है, क्या उसे अपना इतिहास याद नहीं है. 2004 में जहां पेट्रोल 29 रुपये प्रति लीटर था वहीं यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में यह 2014 में 74 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया था. घी जहा पर 2004 में 130 रुपये प्रति किलो था वहीं 2014 में यह 380 रुपये प्रति किलो था. मोबाइल पर डाटा चार्ज जहां पहले 300 रुपये में 1 जीबी मिल रहा था वहीं यह अब 300 रुपये में 100 जीबी मिल रहा है. जहां पहले 200 फोन कॉल के चार्ज 8 रुपये प्रति मिनट देने होते थे, वही अब डाटा पैक के साथ फ्री में मिल रहा है.