मुंबई
पिछले साल ठाणे जिले में गुमशुदा एक लड़की का पता लगाने में पुलिस की नाकामी को गंभीरता से लेते हुए मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे मामलों में मानसिकता बदलने की जरूरत है। न्यायमूर्ति एस.सी. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की दो सदस्यों की पीठ ने 10 जुलाई को जारी अपने आदेश में पुलिस अधिकारियों से कहा कि उन्हें यह मानना बंद कर देना चाहिए कि किसी नाबालिग लड़की की गुमशुदगी का हर मामला उसके अपने प्रेमी के साथ भागने का है, जैसा कि फिल्मों में दिखाया जाता है। पीठ ने कहा, ‘हम पुलिस की मौजूदा मानसिकता से नाखुश हैं। जांच टीमों और ऊंचे ओहदे पर नियुक्त अधिकारियों को हर मामले को ऐसा नहीं मानना चाहिए।’ अदालत ने कहा कि अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये जीवन की वास्तविक घटनाएं हैं। यह जीवन फिल्मों की तरह नहीं है जिसमें घर से गायब लड़की अपने प्रेमी संग चली गई हो। हमारे बीच ऐसे भी लोग हैं जो अपने बच्चों की गुमशुदगी की पीड़ा सह रहे हैं और गुमशुदा बच्चे भी तकलीफ झेल रहे हैं। अदालत ने यह एक लड़की के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपनी टिप्पणी दी।
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पुलिस से कहा कि, ‘यह उचित समय है कि उनकी (पुलिस की) मानसिकता में बदलाव लाया जाए।’ लड़की के पिता ने इस साल की शुरूआत में यह याचिका दायर कर अपनी बेटी की तलाश का काम तेज करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने पुलिस को ताजा स्थिति रिपोर्ट सौंपने के लिए दो हफ्ते का और समय दिया है।’ एक रेकॉर्ड के अनुसार मुंबई में पांच वर्षों के दौरान 26,000 से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं जिनका कुछ पता नहीं चला।
सरकारी वकील का आरोप लड़के के बहकाने पर भागी
अदालत के पिछले निर्देशों के अनुपालन में अतिरिक्त सरकारी वकील जे.पी. याज्ञनिक ने दलील दी, ‘अब तक की गई जांच के मुताबिक, नाबालिग लड़की अपने स्कूल के एक लड़के के बहकाने पर घर छोड़कर भाग गई थी। उन्होंने कहा कि जांच से पता चलता है कि वे दोनों तमिलनाडु भाग गए हैं और लगातार अपना ठिकाना बदलते रहते हैं। पुलिस ने लड़के के माता-पिता का बयान दर्ज किया है और उन पर कोई संदेह नहीं है।
कथित अपहरण का है मामला
पीठ ने कहा कि यह मामला एक नाबालिग लड़की के कथित अपहरण और उसे उसके माता पिता के संरक्षण से दूर करने का है। पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट, द प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सैक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट आदि का कोई मतलब नहीं रह जाता है। पीठ ने कहा कि यह मामला सीधा-सादा एक नाबालिग लड़की के माता-पिता के पास से भगाकर जे जाने का है। इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि ऐसे बच्चों को कई बार वेश्यावृत्ति जैसी भयानक दलदल में झोंक दिया जाता है।
26,000 से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता
महाराष्ट्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, मुंबई में पिछले पांच साल के दौरान 26,000 से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं। इनमें से 24,444 मिल गईं, जबकि 2,264 अब भी लापता हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसी सत्र में विधानसभा में कांग्रेस विधायकों के एक सवाल के लिखित जवाब में यह आंकड़ा पेश किया है। गृह मंत्रालय का भी काम-काज देख रहे फडणवीस ने कहा, ‘2013-17 के बीच 5,058 नाबालिग लड़कियों सहित कुल 26,708 महिलाएं लापता हुईं। इनमें से 24,444 मिल गईं। हालांकि 2,264 लड़कियां अभी तक लापता है।’ विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील और अन्य कांग्रेसी नेता गुमशुदा लड़कियों और महिलाओं की संख्या के बारे में जानना चाहते थे।