मुंबई
कभी सुरक्षा बढ़ाने के लिए तो कभी इस्तेमाल करने लायक जगह बचाने के लिए घरों की बालकनी में ग्रिल लगाने की कीमत लोगों को जान देकर चुकानी पड़ सकती है। दरअसल, आग या किसी मुसीबत के वक्त में घर से बाहर निकलने के लिए बालकनी का रास्ता सहायक साबित हो सकता है लेकिन ग्रिल लगाने से यह बाधित हो जाता है। ऐसे में खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में परेल की क्रिस्टल टावर इमारत में इसकी बानगी देखने को मिली। उस हादसे में 4 लोगों की मौत हो गई थी। मदद को पहुंचे दमकल कर्मियों का काफी वक्त ग्रिल काटने में निकल गया। कुछ लोगों ने ग्रिल पूरी तरह बंद नहीं कराई थी। इससे उन्हें बाहर निकलने में आसानी हुई। करीब 8 लोगों को आसानी से इसीलिए बाहर निकाला जा सका था लेकिन बाकी लोगों को काफी परेशानी हुई।
नियम नहीं होने से बढ़ावा
अर्बन डिजाइन रीसर्च इंस्टिट्यूट के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर पंकज जोशी ने बताया कि न ही डिवेलपमेंट कंट्रोल रेग्युलेशन और न ही महाराष्ट्र रीजनल टाउन प्लानिंग ऐक्ट बालकनी और खिड़की पर लगी ग्रिल को लेकर नियम बनाता है। उन्होंने कहा कि कई लोग सुरक्षा के लिए ऐसा करते हैं जबकि इससे ठीक उलट ये खतरा बन सकती हैं क्योंकि इनसे आप भाग सकते।
खुलने वाली ग्रिल लगाएं
जोशी ने कहा कि इसी तरह एसी भी खतरनाक होता है। उन्होंने कहा कि कई बार एसी के हिस्सों को इन्हीं ग्रिल्स में लगा दिया जाता है। चीफ फायर ऑफिसर प्रभात रहांगडाले ने बताया कि फायर सेफ्टी गाइडलाइन्स में यह कहा जाता है कि खिड़कियां बंद न हों लेकिन ग्रिल्स के बारे में कुछ नहीं कहा जाता। उन्होंने कहा कि कम से कम सड़क की ओर वाली ग्रिल को खुला रखा जाए। उन्होंने सलाह दी कि लोग अगर ग्रिल लगाते भी हैं तो खुलने वाली लगाएं जिनसे आपात के समय में उनका इस्तेमाल किया जा सके।
उन्होंने बताया कि पहले भी ग्रिल में फंसने के कारण कई जानें जा चुकी हैं। वहीं आर्किटेक्ट जयंत वैद्य ने बताया कि अब खुलने वाली ग्रिल्स के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। उधर, क्रिस्टल टावर को असुरक्षित इमारत घोषित किए जाने के बाद उसमें रहने वाले लोगों के लिए दूसरा ठिकाना ढूंढना मुश्किल हो गया है।