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बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना ‘गे पैनिक डिफेंस’, हत्या का इल्जाम किया खारिज

मुंबई
बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘गे पैनिक डिफेंस’ को स्वीकार करते हुए आरोपी की उम्रकैद की सजा को कम करने का फैसला किया। 7 साल पुराने मामले में हाई कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलील को स्वीकार करते हुए मर्डर केस में गैर इरादतन हत्या की सजा सुनाई। दरअसल 7 साल पहले मुंबई के नागपाड़ा इलाके में एक शख्स ने अपने दोस्त की हत्या कर दी थी। हाई कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में आरोपी (35) के खिलाफ हत्या का अपराध और उम्रकैद की सजा को खारिज करते हुए उसे गैर इरादतन हत्या से जुड़ी सजा सुनाई। जस्टिस भूषण गवई और सारंग कोतवाल ने उसे उतनी सजा के योग्य बताया जितनी वह जेल में भोग चुका है और रिहाई के आदेश भी दिए।

इससे पहले आरोपी ने हाई कोर्ट में दलील देते हुए कहा था कि वह अपने दोस्त की हत्या का जिम्मेदार नहीं है। साथ ही उसने दावा किया था कि उसके दोस्त ने उसके साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की कोशिश की और उसका उत्पीड़न किया था। इसके प्रतिरोध में ही उसने अपने दोस्त पर हमला बोल दिया। दलील देते हुए आरोपी ने मामले में ‘गे पैनिक डिफेंस’ का सहारा लिया। यह एक दुर्लभ कानूनी उपाय है जो पहली बार 60 के दशक में यूएस की अदालत में इस्तेमाल किया गया था।

आवेश में आकर उठाया कदम
बेंच ने कहा, ‘हमने आरोपी द्वारा दी गई दलीलों पर विचार किया जो बिल्कुल सत्य मालूम होती हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने पार्टनर को अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए कहता है और ऐसा न करने पर उसके साथ मारपीट करता है तो यह संभव है कि पीड़ित व्यक्ति आवेश में आकर और खुद को बचाने के लिए कोई ऐसा कदम उठा सकता है।’

2011 का है मामला
कोर्ट ने कहा कि आरोपी छह साल और नौ महीने की सजा काट चुका है। हमें यह लगता है कि आरोपी इस केस में जितनी सजा भोग चुका है इस केस में न्याय के लिए उतना काफी है। मामला 20 नवंबर 2011 का है, जब अपने पड़ोसी की चीख सुनकर एक स्क्रैप डीलर ने उसके घर की ओर भागा। जैसे ही स्क्रैप डीलर ने दरवाजा खोला उसने देखा कि उसका पड़ोसी (कसाई) खून से लथपथ जमीन पर पड़ा है और आरोपी भागने की फिराक में है।

2013 में दी उम्रकैद की सजा
उसने आरोपी को कमरे में धकेल कर बंद कर दिया और दूसरे दुकानदारों और पुलिस को बुलाया। जब दोबारा कमरा खोला गया तब तक कसाई की मौत हो चुकी थी और आरोपी भी घायल था। सेशन कोर्ट ने इस मामले में 2013 में आरोपी को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद आरोपी ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ चुनौती दी और दलील दी कि उसने आवेश में आकर अपने बचाव में यह कदम उठाया था।

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